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Showing posts from September, 2018

जवाब हैं वो।

क्या तुम्हे बताऊँ के कितना लाजवाब हैं वो, मेरे हर सवाल का आखिर जवाब हैं वो! यूँ तो सभी चीज़े ख़्वाब में रक़्स करती हैं, पर जो मयस्सर नही मुझे ऐसा ख़्वाब हैं वो! उसे देखता हूँ तो मदहोशी छाने लगती हैं, कदम बहकने लगते हैं ऐसी शराब हैं वो! वो ना मिलेगा फिर भी हैं उसी की जुस्तुजू, ना जाने मेरे लिए कैसा इंतिखाब हैं वो! उसके जज़्बात हैं पेचीदा मगर सादगी भरे हुए, और 'तनहा' कहता हैं खुली किताब हैं वो! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Na Aana Behtar Tha

ज़माने के रंगों से उतर जाना बेहतर था, जिंदा  रहने से  तो मर जाना बेहतर था! अब जाते हुए तुम दिल तोड़कर जाते हो, ऐसे आने से तो तेरा ना आना बेहतर था! tariq azeem tanha

Ulfat me insa'n

उल्फत में इंसा खुद अपना रहजन होवे। कमरे में अँधेरा कर इनकी तन्हाई रौशन होवे। रस्मे-दुनिया हैं की कोई खुश तो कोई नाशाद हो, उठ जाए जब महफ़िल तो तन्हाई आबाद हो। Tariq azeem tanha

इमरोज़ टुकड़ा

इमरोज़ टुकड़ा टुकड़ा हुआ हूँ मुहब्बत में, आईना हुआ करता था अभी कल की बात हैं! गुज़र रही हैं मेरी जिंदगी अब सहारे शराब के, पारसा हुआ करता था अभी कल की बात हैं! तारिक़ अज़ीम तन्हा