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Showing posts from February, 2017

तारिक को सबक.....

तारिक को  सबक  सिखाने  में, हम फिर लगे हैं दीया जलाने में! तारिक-तीरगी,अँधेरा राज़दार मेरा दुश्मन था लेकिन, ऐब नहीं खोले उसने ज़माने में! तूने उस गुल को क्यों तोड़ दिया, जो लगा था तेरा घर सजाने में! महब्बत गर किसी से हो जाए, वक़्त लग ही जाता हैं जताने में!                 वो खुद को ही गधा मान चूका, जिसे लोग लगे हैं शेर बनाने में! रात  मुझसे रात  यूँ बोली  की, क्या हासिल है अश्क़ बहाने में! वो मुझे इक पल में छोड़ गया, जिसेउम्र गुज़रीअपना बनानेमें! नासेह तू तो खिलाफे-मय था, तू क्यू लगा है शराब पिलाने में! मुसव्विर ने भी दम ना लिया, तस्वीरको  मेरी तनहा बनानेमें! मुसव्विर-पेंटर तारिक़ अज़ीम तनहा

आया होगा....

उसे जरूर ही  किसी ने रुलाया होगा, तभी उसकी चश्म में आंसू आया होगा! उसकी बू जानता हूँ वो नहीं हो सकता, मेरा दरवाज़ा हवाओ ने हिलाया होगा! उसे डर लगता था सर्दी में नहाते हुए, मौसम-ए-तपिश  में वो नहाया होगा! कुछ तो था, यु ही नहीं था मैं 'तनहा', आरज़ू को मेरी जिन्दा जलाया होगा! चश्मे-महताब उस शख्स पर ही रही, चाँद से भी खूब उसका साया होगा! हर वक़्त करता था वो रश्के-तन्हाई, तन्हाईयो में उसने सुकून पाया होगा! दर्दे-करम उनके कैसे भूल जाए भला, दिले-खुबान ने ये दर्द दिलाया होगा! तारिक़ अज़ीम तनहा

बहार आज की रात

क्या खूब हैं बहार आज की रात संग हैं महरे-यार आज की रात महर; चाँद यादे-यार में चश्मे-आब हैं बस यूँ दिल है दो-चार आज की रात चश्मे-आब-आँखों का पानी रात में मिली हैं खुशबू गुलो को गुलो में हैं वक़ार आज की रात वकार; इज़्ज़त दौरां-ए-महब्बत हैं अदु ना हो उठा मत तलवार आज की रात खारो-गुल है गुलशन भी आज शादाबे-चमनजार आज की रात खारो-गुल-फूल और कांटे शादाब-चमन्ज़ार-हरा भरा बाग़ 'तनहा' के आगोश में तन्हाई हैं तनहा को सरे-दार आज की रात आगोश-आलिंगन सरे-दार; प्राणदंड तारिक़ अज़ीम :तनहा:

नज़र आते हैं..

पहाडो-आसमा पे तारे नज़र आते हैं, जलते और बुझते  सारे नज़र आते हैं! पहाड़ो-आसमा:- पहाड़ और आसमा हमारी गवाही लोग दे मुमकिन कहाँ. सब तरफदार तुम्हारे नज़र आते हैं! परेशान हैं सब अब दर्दे-मुहब्बत से, हम भी इश्क़ में मारे  नज़र आते  हैं! कलम ओ कागज़ भी एक सहारा हैं, 'तनहा' लिखके सहारे नज़र आते हैं! जो खुदको सिकंदरे-मामूर कहता हैं, वो भी तो  इश्क़ से हारे नज़र आते हैं! सिकंदरे-मामूर; दुनिया का बादशाह     %%%%तारिक़ अज़ीम 'तनहा'%%%%

Bezaar Hu....

युही हर इक के दिल में खार हूँ, सच पे ही लिखने को तैयार हूँ! खार-काँटा चंद पलो में बिक जाता हैं झूठ, और मैं सच को लेके बेज़ार हूँ! बेज़ार-दुखी

दुल्हन बन के.....

इक दफा दुल्हन बन के आ, जिस्म-ए-मिलन बनके आ! हिना ओ सिंगार सब करना, जिंदगी का चमन बनके आ! दीदा र हो और  मिले मौ त, लहंगा-ए-कफ़न बनके आ! काफिले का  पड़ाव चाहिये, सफर-ए-नशेमन बन के आ! तुझे देखलू और देखता रहूँ, मेरे ऐसे ही नयन बनके आ! 'तनहा' हैं अहले-कलम तू, भी इक हमसुख़न बनके आ!      तारिक़ अज़ीम तनहा

दुल्हन बन के......

इक दफा दुल्हन बन के आ, जिस्म-ए-मिलन बनके आ! हिना ओ सिंगार सब करना, जिंदगी का चमन बनके आ! दीदा र हो और  मिले मौ त, लहंगा-ए-कफ़न बनके आ! काफिले का  पड़ाव चाहिये, सफर-ए-नशेमन बन के आ! तुझे देखलू और देखता रहूँ, मेरे ऐसे ही नयन बनके आ! 'तनहा' हैं अहले-कलम तू, भी इक हमसुख़न बनके आ!       तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

हुस्ने-जमीं

जमीं का हुस्न भी आफताब से हैं, तजल्ली है तो शादाब है आलम! आफ़ताब-सूरज तजल्ली-रौशनी शादाब-हरा-भरा, हरियाली आलम-जहाँ, दुनिया, दयार, संसार    तनहा शायर

दिले-जश्न

नज़र में तिरी नश्तर ढूंढ रहा था, क़त्ल में इतना असर ढूंढ रहा था! खेलने लगा बच्चा बनके बच्चों में, दिल जश्न का मंज़र  ढूंढ रहा था! सुर्ख ज़ुबाँ से   हुआ दिल फ़िगार, फिर भी वो  खंजर ढूंढ रहा था! तेरे जाने से उजड़ा शहर ऐ दिल, जमीं दिल की बंजर ढूंढ रहा था! जुमलेबाजी-ओ-गुफ़्तार  करके, वो शख्स ऐसे बसर ढूंढ रहा था! दर्द उतारा    कलम से 'तनहा' ने, अंदर एक सुख़नवर ढूंढ रहा था! मैंने  निजोड़ दिया  खून दिल से, कुछ पानी समंदर ढूंढ  रहा था! अloनE पोET शायर तनहा

Khamosh

Yu Chupke Se Jo Muskurata Hu Main . . Is khamosh Hasi se Gam Mitata Hu Main 'Tanha'

मैं भंवर में हूँ.......

मैं भंवर में हूँ, तू किनारा दे दे! मैं डूब रहा हूँ, तू सहारा दे दे!! हैं गरचे बेशुमार दौलत पास! तू उसे गरीब में खसारा दे दे!! दिया था जो लबो से छूकर! वो जाम मुझको दुबारा दे दे!! जो आँखे पुकारती नजीब को! लाकर उस माँ को दुलारा दे दे!! मत चीख के ज़माना बहरा हैं! 'तनहा' लिखके इशारा दे दे!!       तारिक़ अज़ीम 'तनहा'