क्या खूब हैं बहार आज की रात
संग हैं महरे-यार आज की रात
महर; चाँद
यादे-यार में चश्मे-आब हैं बस
यूँ दिल है दो-चार आज की रात
चश्मे-आब-आँखों का पानी
रात में मिली हैं खुशबू गुलो को
गुलो में हैं वक़ार आज की रात
वकार; इज़्ज़त
दौरां-ए-महब्बत हैं अदु ना हो
उठा मत तलवार आज की रात
खारो-गुल है गुलशन भी आज
शादाबे-चमनजार आज की रात
खारो-गुल-फूल और कांटे
शादाब-चमन्ज़ार-हरा भरा बाग़
'तनहा' के आगोश में तन्हाई हैं
तनहा को सरे-दार आज की रात
आगोश-आलिंगन
सरे-दार; प्राणदंड
तारिक़ अज़ीम :तनहा:
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