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Showing posts from May, 2023

Kashti Chahe To Zameen Par Bhi Chal Sakti Hain

कश्ती चाहे तो ज़मीं पर भी चल सकती है, तेरी हस्ती ही तेरी किस्मत को बदल सकती है। मैंने जिस उम्मीद से तेरी तस्वीर को देखा है मेरे यार, मुझको खदशा है ये बाहर भी निकल सकती है। जो रहती हर लम्हा अब हैरां सी मेरी तस्वीर, ग़म के आगोश में आकर ये सम्भल सकती है। है उसको इज़ाज़त की वो चाहे तो आ सकता है, है शाम की ज़ीस्त की वो चाहे तो ढल सकती है। है मेरा मुक़द्दर की दश्त-ओ-सेहरा में हो क़याम, है मेरी ही तक़दीर की चाहे तो बदल सकती है। पैराहन शादमा है 'तनहा' इस कदर के आज, कोई लड़की हमपे भी फिसल सकती है। तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Sultan Alauddin Khilji | सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी

क़ुतुबमीनार के सहन में मौजूद ये कब्र सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की है आज के दिन ही, 4 जनवरी 1316 ई. को दिल्ली में 50 साल की उम्र में उनकी वफ़ात हो गयी थी। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को हिंदुस्तान को मंगोल हमलावरों से बचाने के अलावा उनकी इन्तेजामि इस्लाहात, मेहसुलात और सल्तनत में कीमतों पर कंट्रोल समेत ढेरों काम के लिए याद किया जाता है।     जब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने हुकूमत संभाली थी तब मंगलों ने दुनिया भर में अफरा-तफरी मचा रखी थी। ख़्वारज़्म से लेकर ईरान, इराक समेत बगदाद जैसे बड़े शहर को मंगोलो ने खाक में मिला दिया था। अब जब मंगोल हिंदुस्तान को रौंदते हुए मंगोलिया जाने की कोशिस कर रहे थे। तब अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी जहानत से उनकी कोशिशों को नाकाम बना दिया। और मंगोलों से हुयी एक झड़प के बाद 8000 मंगोलो के सर को कलम कर के दिल्ली में उस वक्त बन रहे सीरी फोर्ट के मीनारों में चुनवा दिया, और मंगोलो को तजाकिस्तान के रास्ते से होकर गुजरने के लिए मजबूर कर दिया।    इसके अलावा सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे पहले टैक्स सिस्टम को सुधारा उन्होंने सिस्टम से बिचौलियों को हटाकर सीधे आम आदम

Kashti Chahe To Zameen Pr Bhi Chal Sakti Hai

कश्ती चाहे तो ज़मीं पर भी चल सकती है, तेरी हस्ती ही तेरी किस्मत को बदल सकती है। मैंने जिस उम्मीद से तेरी तस्वीर को देखा है मेरे यार, मुझको खदशा है ये बाहर भी निकल सकती है। जो रहती हर लम्हा अब हैरां सी मेरी तस्वीर, ग़म के आगोश में आकर ये सम्भल सकती है। है उसको इज़ाज़त की वो चाहे तो आ सकता है, है शाम की ज़ीस्त की वो चाहे तो ढल सकती है। है मेरा मुक़द्दर की दश्त-ओ-सेहरा में हो क़याम, है मेरी ही तक़दीर की चाहे तो बदल सकती है। पैराहन शादमा है 'तनहा' इस कदर के आज, कोई लड़की हमपे भी फिसल सकती है। तारिक़ अज़ीम 'तनहा'