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Showing posts from October, 2017

दास्तान-ए-तनहा

मेरी किताब का कवर पृष्ठ अब मरके भी तुम सबमे जिन्दा रहूँगा, लिख रहा एक किताब दास्तान-ए-'तनहा'!!

दास्तान-ए-तनहा

सितारों तुम अब तो सो जाओ....

सितारों तुम अब तो सो जाओ के रात अभी बाकी है मुझे भी नींद आती हैं दीपक बुझे जा रहे हैं बेताब हुए जा रहे हैं हवाये ठंडी हो गयी मौसम में नमी हो गयी तुम  अब खवाबो में खो जाओ सितारों तुम अब तो सो जाओ चाँद नज़र दिखाने लगा दिलकश नज़र आने लगा कलम अब थम गयी हैं नब्ज़ मेरी जम गयी हैं खूबसूरती रात पे आने लगी मदमस्त होकर छाने लगी तुम भी इनके दीवाने हो जाओ सितारों तुम अब तो सो जाओ शाम कहकर गयी मुझसे रुसवा होकर गयी मुझसे वो रूठा हैं एक बात लेकर नाराज़ हैं मेरा साथ लेकर क्या से क्या हो गया हैं वो मुझसे जुदा हो गया हैं तुम अब सबसे जुदा हो जाओ सितारों तुम अब तो सो जाओ कल का दिन फिर जायेगा 'तनहा' उसमे घिर जायेगा हालात से समझौता होगा मंज़िल का न्यौता होगा फिर घर से निकल पड़ेंगे अपनी राह पर चल पड़ेंगे अपनी राह पे निकल तो जाओ सितारों तुम अब तो सो जाओ ये तो रोज़ चलता रहेगा सुरज़ रोज़ निकलता रहेगा छिप जाएगा वो कोने में क्या होना, उसका होने में नाराज़ को नाराज़ रहने दो तुम बस अपना साज़ रहने दो जिंदगी खुलकर जीये जाओ बेवजह खुश हुए जाओ पलके भारी होती जा रही मुझे भी अब नींद आ

हर दफा

हर दफा बे नज़र किया जा रहा हूँ मैं, या तो हुनर नही हैं या समझ नही आ रहा हूँ मैं!

छन्द मुक्त कविता

हज़ारो की भीड़ में मिली थी वो बस ऐसे ही बात की तो अच्छा लगा, हालांकि उसका प्रथम वर्ष था तो मैंने उसे थोडा सहारा दिया उसका काम था फोटोग्राफी उसके अंदर एक ललक थी, उसकी बातो से लगता था की वो आकाश को छूना चाहती हैं, इन हवाओ में खुशबू खोलना चाहती हैं! वो चाहती हैं की कॉलेज में उसे पहचान मिले, उसका नाम मिले। बस यही जान पाया हूँ अब तक उसका दिल बहुत अच्छा हैं, ईर्ष्या, नफरते उससे बहुत दूर हैं, आखिर सबकी लाड़ली जो हैं, कॉलेज में सब उसे बहुत पसंद करते हैं! मानवता का उदाहरण समझ लीजिये, अपने नाम की तरह उसकी बातो में भी खुशबू हैं, बिलकुल बच्ची सी हैं, प्यारी भी और मैं तो उसे तो उसे बच्चे-बच्चे कहकर ही बात करता हूँ।

तनहा जब भी गुज़रा फाकाकशी से...

देखो तो हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए, खबर नही अपनी हम वहाँ पहुँच गए! जहाँ कहीं उसका पता मिला था हमे, अंजुमन से उठकर वहां वहां पहुच गए! ताबीर ढूंढते-ढूंढते थककर टूट गए, फिर ख़्वाब अपने भी निहाँ पहुच गए! चाँद खूबसूरत रहेगा आखिर  कैसे, वहां भी जालिम ये इंसाँ पहुच गए! गुलशन जब भी आबाद करना चाहा, शादाब उसे करने बागबाँ पहुँच गए! जब भी 'तनहा' गुज़रा फाकाकशी से, उस रात उसके घर मेहमाँ पहुँच गए। तारिक़ अज़ीम 'तनहा'