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Showing posts from July, 2022

नेशनलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, एफिशएंसी

नेशनलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, एफिशएंसी आजकल के नए नवेले मैनेजमेंट गुरूओ को सुनता हूँ। ये कुछ शब्द चबाते हैं, और आजादी के बाद, देश मे फ्री मार्किट कैपिटलिज्म न अपनाने का अफसोस करते दिखते हैं। उस दौर की आर्थिक हकीकतों से बेखबर लोग यह जान लें, आज 10 विधायकों को बिक जाने की जितनी कीमत  है, तब उतना पूरे भारत देश का बजट था। कोई 190 करोड़.. । बस इतना देश की कमाई थी, टैक्स कलेक्शन था। यही खर्च था। (जिन्हें आज की दरों पर हिसाब चाहिए, तो मुम्बई की बीएमसी के आज के बजट बराबर गिन लें) ●●● फ्री मार्किट कैपटलिज्म के लिए बड़े उद्योग, बड़े बैंक तकनीक और रिस्क बियरिंग एबिलिटी वाले उद्यमी चाहिए। खासकर ऐसे लोग, जो निजी क्षेत्र में रिसर्च और डेवलमेंट का माद्दा रखते हों, जिसे सरकार बढ़ावा दे सकें। पर आजादी के वक़्त ऐसा कुछ था नही, जिसे आप बढ़ावा दे सकते। हां, टाटा बिड़ला बजाज और दूसरे नाम, किवदन्तियों की तरह प्रसिद्ध अवश्य थे। दूसरों से अमीर थे। अफीम कपास के व्यापार से कमाया पैसा था। बंगला गाड़ी, एक दो फैक्ट्री, बनवाये हुए कुछ मंदिर थे। लेकिन आर्थिक रूप रेगिस्तान इस देश के औद्योगीकरण के लिए जितनी पूंजी, तकनीक