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Showing posts from May, 2017

बहुत दिनों बाद कई...

बहुत दिनों बाद कई बाते अमल में आयी, जब तुझको सोचा और तू ग़ज़ल में आयीं! उस इमारत के दरो-दीवार में ही हैं मुहब्बत, वरना क्या ख़ास बात ताजमहल में आयी! लालसा ताज़पोशी की थी जो दिए जुमले, आके सियासत में गुफ्तगू बदल में आयीं! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Kitna haseen hain

कितना हसी हैं मौसमें-बहार आज की शाम, आ रही हैं आसमाँ से फुआर आज की शाम! ये बुँदे बारिश की गुमाँ करती होगी खुदपर, भीग रहा हैं इनमे मेरा यार आज की शाम! ये ठंडी हवाये, ये फ़िज़ा कहाँ से आ रही हैं, यूँ भी हैं अपना दिल दो चार आज की शाम! पूछा था किसी ने ग़ज़ल में मेहनत हैं क्या, निकली जिस्म से खू की धार आज की शाम! इन्हें नहाने दे, भीग जाने दे पूरी ही तरह, रोकना इन्हें  होगा नागवार आज की शाम! उसकी खुशबु आ रही हैं वो पास ही हैं कहीं, आई हैं हवा लेके उसका तार आज की शाम! ये खुशनुमा शाम काश यही रुके तो मज़ा है, ना रुकी तो दिल होगा बेज़ार आज की शाम! जमीन-ए-हिन्द अगर मांगेगी खून मुझसे, तो मैं हूँ जान देने को तैयार आज की शाम! गुनगुना रहे हैं मेरे दोस्त भी गीत बारिश के, गाकर ये भी हो गये गीतकार आज की शाम! मैंने एकबार कहा की उठो सब एक हो जाओ, पसीना-पसीना है सरकार आज की शाम! जिंदगी हैं दोस्ताना गले सबसे मिलते चलो, दोस्ती में ना लाओ तलवार आज की शाम! शायद यूँ मैं बैठ गया हूँ आज बालकनी में, काश हो जाए उसका दीदार आज की शाम! चाँद नज़र उतारता होगा मेरी फलक से ही, दुनिया में हैं कोई कलमकार आ

सितम कर.....

सितम कर दिया गुलशन को करके सुपुर्दे-आग, इससे बेहतर तो कर देते गुलशन को सुपुर्दे-जाग! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Ye tera Lab-E-...

ये तेरा लबे-जुम्बिशे-इकरारे-मुहब्बत, सरसब्ज़ कर गया मिरे बागे-दिल को! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

आसु बहाओ....

आँसू बहाओ या चुकाओ कीमतें-बर्बादी, हम इतने आम भी नहीं के जो मुफ़्त में मिले! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

शायद......

शायद 'तनहा' का अपना कोई ना होगा, वो अक्सर करता था अपने आप से बाते! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Sab Log To....

सब लोग तो मैखाने में जाकर पीते है, हम जहाँ बैठ के पीये वहीं मैख़ाना बने! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Jinke Kadmo...

जिनके कदमो को आदत हैं लड़खड़ाने की वो जुर्रत ना करे हमसे नज़रे मिलाने की

तू अगर....

!!.."तू अगर सँभालने का वादा करले मुझसे"..!! . . !!.."मैं हज़ार बार पीकर बहक जाउ ऐसे ही"..!! Must like our poetry Page https://m.facebook.com/tariqazeemtanhaofficial/

उन्हें हैं ये यकीन...

जिंदगी तुझसे क्या कुछ नहीं मिला मुझको, मिला हैं तुझसे ही हर एक दर्द नया मुझको! अहबाब तो मेरे, मुझसे मेरी जान चाहते है, दुश्मन जिन्दा रहने की देते हैं दुआ मुझको! उन्हें हैं ये यकीन की मयपरस्त हैं 'तनहा', जमाने वाले क्यों हैं मानते पारसा मुझको,

तुम अगर....

तुम अगर युही मुस्कुराते गुलशन से गुज़र जाओ, तो मुरझाई हुई कलिया भी तुम्हे देखकर खिल उठे! तारिक़ 'तनहा'

Hum To Aise....

हम तो ऐसे ही हैं जिसे चाहे अफज़ल कर दे, मुरझाई कली पर लिखेँ तो उसे कमल कर दे! Tariq Azeem 'Tanha'

जिंदगी को गर बसर......

जिंदगी को गर बसर करना हैं तो खुद पे इक नज़र करना हैं बदल दीजिए निज़ाम ए चमन गर पैदा कोई दीदावर करना है पहले जानने है शऊरे-शायरी फिर खुदको सुख़नवर करना हैं खुशबख्ती यूँ हैं आबाद अपनी जो तुझे नज़र पे नज़र करना हैं मुन्तशिर जान या जिद मेरी बहाकर आँखों से बहर करना हैं हमने जिन्हें की ज़मीने खैरात मकसद उनका हमे बेघर करना हैं आलम ऐतबार करे 'तनहा' का खुदको ऐसा मोतबर करना हैं तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

ऐ मुंसिफ

ऐ मुंसिफ तुझे मुंसिफि ए निजाम बदलना होगा, वरना शाह से कहकर हमे तेरा काम बदलना होगा!! शायद उन्होंने छोड़ दिया होगा वो आशियाना, हमे भी अपना ये  दर-ओ-बाम बदलना होगा!! दिलो में इक दूसरे के लिए खार पैदा किये हुए है, इन्हे मुहब्बत सीखाकर नफरत का नाम बदलना होगा!! कैफयते-मीना चढ़ता नहीं हैं आज तो ऐ साक़ी, तुझे नज़रो से हमे पिला के ये जाम बदलना होगा!! खो गए वो कहीं गर्दिश-ए-राहे-मंज़िल में 'तनहा', जो कहा करते थे हमे ये निज़ामे-अय्याम बदलना होगा !! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'