ऐ मुंसिफ तुझे मुंसिफि ए निजाम बदलना होगा,
वरना शाह से कहकर हमे तेरा काम बदलना होगा!!
शायद उन्होंने छोड़ दिया होगा वो आशियाना,
हमे भी अपना ये दर-ओ-बाम बदलना होगा!!
दिलो में इक दूसरे के लिए खार पैदा किये हुए है,
इन्हे मुहब्बत सीखाकर नफरत का नाम बदलना होगा!!
कैफयते-मीना चढ़ता नहीं हैं आज तो ऐ साक़ी,
तुझे नज़रो से हमे पिला के ये जाम बदलना होगा!!
खो गए वो कहीं गर्दिश-ए-राहे-मंज़िल में 'तनहा',
जो कहा करते थे हमे ये निज़ामे-अय्याम बदलना होगा !!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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