जिंदगी को गर बसर करना हैं
तो खुद पे इक नज़र करना हैं
बदल दीजिए निज़ाम ए चमन
गर पैदा कोई दीदावर करना है
पहले जानने है शऊरे-शायरी
फिर खुदको सुख़नवर करना हैं
खुशबख्ती यूँ हैं आबाद अपनी
जो तुझे नज़र पे नज़र करना हैं
मुन्तशिर जान या जिद मेरी
बहाकर आँखों से बहर करना हैं
हमने जिन्हें की ज़मीने खैरात
मकसद उनका हमे बेघर करना हैं
आलम ऐतबार करे 'तनहा' का
खुदको ऐसा मोतबर करना हैं
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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