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Showing posts from December, 2018

मज़बूरी में

मज़बूरी में बे-आबरू होके चमन से निकल जाती हैं, पैसे के लिए कोई कली पैराहन से निकल जाती हैं! मेरे  हमदम  तेरे  चेहरे  की  तासीर  ही  कुछ  ऐसी हैं, मुझे जो बात कहनी होती हैं जेहन से निकल जाती हैं! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

चमनज़ार तुम्हारे ही

चमनज़ार तुम्हारे ही तबस्सुम से शादाब होते हैं, देखके तुम्हें लगता हैं हँसने के भी आदाब होते हैं! सुबहे-दम मशगूल रहती है कुदरत भी इबादत में, कलिया सज़दे करती हैं शज़र के आदाब होते हैं Tariq Azeem Tanha

इश्क़ करती हो।

छिपकर शायरी पढ़ती हो, यक़ीनन इश्क़ करती हो! बाम पर आती हो क्यो, किसके लिए संवरती हो! क्लास में और भी सब हैं, मुझे क्यो देखा करती हो! लिखा मगर जाता नही, कोशिश बहुत करती हो! बस गयी हो इन आंखों में, मेरे ही घर में रहती हो! जां छिड़कते हैं तुमपे सब, तुम किसपे छिड़कती हो! कहती भी नही इश्क़ नही! और हाँ भी नही करती हो! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'