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Showing posts from January, 2023

तारीख़-ए-इंसानी की अहम जंग

क़रीब 1260 साल पहले, दक्षिण-पूर्वी कज़ाख़्सतान की वादी-ए-तालास में क़दीम शहर अतला के क़रीब एक बहुत बढ़ी जंग हुई, जिस में एक तरफ़ ख़िलाफ़ते अब्बासिया की फ़ौज और तुर्किस्तान के ख़ानात की फ़ौज थी और दूसरी तरफ तांग साम्राजय की चीनी फ़ौज थी।ये जंग सेंट्रल एशिया के कंट्रोल को लेकर थी जो दरहक़ीकत दो तहज़ीबों का टकराव था। 751 ई० में दरयाए तालास के मुक़ाम पर होने वाली इस जंग को चीन और अरब तारीख़ की वाहिद जंग तसव्वुर किया जाता है।दो तहज़ीबों के इस टकराव ने ना सिर्फ़ सेंट्रल एशिया के ख़ित्ते को मुतासिर किया, बल्कि इस जंग ने पश्चिम की और हो रहे चीनी साम्राज्य के फैलाव(विस्तार) को रोक दिया चूँकि सेंट्रल एशिया के बेशतर हिस्सों पर मुसलमानों की हुकूमत थी। लेकिन चीन फिर भी कुछ अहम खित्तों को अपने पास रखा जो कि किर्गिज़स्तान के कुछ हिस्से थे, चीन हमेशा अपना खोया हुआ असरों रुसूख़ हासिल करने की ख्वाहिश रखता था, उस ने उमय्यद सल्तनत में पेश आने वाले बहरान और झगड़ों का फ़ायदा उठाया चूँकि रियासत उस वक़्त इंक़लाब के खिलाफ़ लड़ने में मसरूफ़ थी। चीन ने कमांडर शियांज़ी की क़यादत में   एक फ़ौजी मुहिम भेजी जिससे उज

Mehar Saud-Ullah Muhammad | A Success story and a Dream of his mother

यह वायरल तस्वीर फ़रवरी 2021 की है। इस तस्वीर के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। तस्वीर में दिख रहे नौजवान का नाम "मेहर सअद-उ-ल्लाह मुहम्मद" है जो 1988 में पैदा हुआ था। मेहर ईराक़ के शहर ख़ालदिया के अल-ख़लीदियह का बाशिंदा है। जब यह नौजवान छोटा था तब इसके उस्ताद ने सबक़ पूरी करने की दरख़्वास्त के साथ ही एक फॉर्म (काग़ज़) भेजा था जिसमें बच्चे की ज़ाती कैफ़ियत और मुस्तक़बिल का डेटा शामिल था। दरअसल मेहर को बचपन ही से पायलट बनने की ख़्वाहिश थी। इसलिए मेहर की वालिदा ने मुस्तक़बिल वाले कॉलम में - "पायलट" लिख दिया था। मेहर की वालिदा हमेशा मेहर से कहती थीं। कब तुम पायलट बनोगे और मुझे मक्का अल-मुकर्रमा लेकर चलोगे?  वक़्त तेज़ी से आगे बढ़ा और मेहर पायलट बन गए। पायलट बनने के बाद मेहर को वो काग़ज़ हाथ लगा जिसमें उनकी वालिदा ने मुस्तक़बिल के कॉलम में पायलट लिखा था। मेहर ने उस कागज़ पर अपनी तस्वीर लगाई और अपनी स्टोरी शेयर की...मेहर जब अपनी वालिदा को लेकर मक्का निकले थे तब उन्होंने मुसाफ़िरों से कहा था। "मेरी मां बताती हैं- मैं हमेशा तुमसे कहती थी तुम कब पायलट बनो

कम्युनिस्ट सोच और कानपुर की तबाही।

एक जमाना था .. कानपुर की "कपड़ा मिल" विश्व प्रसिद्ध थीं कानपुर को "ईस्ट का मैन्चेस्टर" बोला जाता था। लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए। मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे।  बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी। __________________________ फ़िर "कम्युनिस्टो" की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से....बेड़ा गर्क हो गया। "आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।"  ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं,  मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया। नारा दिया गया  "काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो"  अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। "मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।" कानपुर में "कम्युनिस्ट सांसद" बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, क

कटहल सर्दियों का शेर

कटहल एक ऐसी सब्जी है जिसके बारे में तमाम किस्म की अफवाहें फैलाई गई, इसे भला बुरा कहा गया, इसके नाम पर गालियां बना दी गई। यहां तक कि मोदी जी से जब जनता-जनार्दन ने 15 लाख मांगे तो सरकार बोली 'कटहल देंगे'। याद रखिये कटहल में इंग्रेडिएंट्स नहीं पड़ते माल पड़ता है। किसी होटल के मीनू में मैने कभी कटहल नही दिखा। कटहल को अपवर्जित मान लिया गया। सनातनी ब्राह्मणों ने बेशर्मी के साथ कटहल को मटन का समतुल्य बता दिया। यह दुखद था पर था। मैं जब भी ठंड को अपने अगल बगल देखता हूँ या खुद को अकेला पाता हूँ तो कटहल खाता हूं। जनवरी के महीने में अगर कटहल न बने तो सब व्यर्थ है। हांलाकि अभी केवल छ्त्तीसगढ़ महाराष्ट्र में यह अमृत फल दिख रहा। इसकी सब्जी में  प्याज ,लहसुन और गरम मसाले हैं जिसमे तेजपत्ता,दालचीनी और बड़ी इलायची अनिवार्य है। इसे तब तक पकाना चाहिए जब तक कलेजा खुद न कहने लगे अब बर्दाश्त के बाहर है।  कटहल की सब्जी स्टील या शीशे के बर्तन में नही मिट्टी के बर्तन में ही जिसे हम कसोरा कहते हैं उसमें परोसे,पूड़ी हरगिज नही चलेगी,कचौड़ी या फिर पराठे के साथ ले, साथ मे भैंस के दूध की काजू,चिरौंजी, छ

सुल्तान औरंगज़ेब- भारतीय इतिहास में एक हक़परस्त योद्धा

अपने आख़िरी दिनों में औरंगज़ेब की निगाहें केवल पीछे मुड़कर ही नहीं देख रही थीं, बल्कि उनकी ज़द में आने वाला कल भी था। लेकिन वहां उन्हें जो भी दिखाई दे रहा था, वो उन्हें नापसंद था।  औरंगज़ेब अपनी हुकूमत के आने वाले कल को लेकर ख़ौफ़ज़दा थे और इस ख़ौफ़ की अच्छी-खासी वजहें भी थीं उन के पास।  मगर सबसे बड़ी वजह थी सामने खड़ी वे तमाम माली और इंतज़ामी मुश्किलें, जिन्होंने मुग़ल हुकूमत को चारों ओर से घेर रखा था और जिनसे पार ले जाने वाला कोई लायक़ शख़्स औरंगज़ेब को दिखाई नहीं दे रहा था।  मौत के वक़्त औरंगज़ेब के तीन बेटे ज़िंदा थे, उनके दो बेटे उनसे पहले ही चल बसे थे, पर उनमें से एक भी बादशाही मिट्टी का न था।  मिसाल के तौर पर अठारहवीं सदी की शुरुआत में लिखे एक ख़त में औरंगजेब ने अपने दूसरे बेटे मुअज़्ज़म को कांधार फ़तह करने में नाकाम रहने के लिए। न केवल जमकर फटकार लगाई, बल्कि इतनी कड़वी बात कहने से भी गुरेज नहीं किया कि 'नाकारा बेटे से तो बेटी का बाप होना ही अच्छा है.' अपने इस ख़त का अंत भी उन्होंने इस चुभते सवाल के साथ किया कि - 'तुम इस दुनिया में अपने दुश्मनों को और उस दुनिया में पाक

अज्ञेय, ग़ालिब और यूरोपीय लेखकों का सामजंस्य

'शेखर: एक जीवनी' पढ़ते हुए एक प्रसंग आता है। शेखर अपनी बीमार पड़ोसी शान्ति के बगल में बैठा और जब शान्ति पूछती है कि जब मैं तुम्हें देखती हूँ तो तुम भाग क्यों जाते हो? शेखर चुप रहता है। लेकिन शांति के बार-बार पूछने पर शेखर उससे कहता है कि उसके पास एक तस्वीर है, एक पेंटिंग जो शान्ति के जैसी दिखती है। फिर उठता है और अपने घर से वो तस्वीर लेकर आता है। शान्ति उसे देखती है और कहती है उसके पास भी ये तस्वीर है। ये तस्वीर थी रोज़ेत्ती की 'बिएटा बिएट्रिक्स' (Beata Beatrix) जिसे 'मृत्यु का वैभव' (The Glory of Death) भी कहा जाता है।  इतालवी मूल के अँग्रेज दान्ते गैब्रियाल रोज़ेत्ती (Dante Gabrial Rossetti) ने 1830 में इस चित्र को बनाया था। रोज़ेत्ती यूरोपीय कलाजगत में उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के एक महत्वपूर्ण चित्रकार और कवि थे। रोज़ेत्ती 'रफ़ाएल पूर्व भ्रातृसंघ' (Pre-Rafaelite Brotherhood) के सदस्य थे। इस संगठन के एक सदस्य इनके भाई विलियम माइकल रोज़ेत्ती (William Michael Rossetti) भी थे जो खुद एक चित्रकार और कवि थे। साथ ही इनकी बहन क्रिश्चियाना (Christiana) और इनकी ब

अकबर और राणा प्रताप । Akbar & Maharana Pratap

अक़बर और महाराणा प्रताप इतिहास के महान लोगों में से है। दोनो के महान होने के अपनी अपनी वजह हैं। अपने स्वाभिमान के लिए बड़ी से बड़ी ताक़त के आगे ना झुकना ये ख़ूबी महराणा प्रताप को महान बनाती है।  अक़बर ज़मीन के साथ साथ लोगो के दिल भी जितना जानते थे। उन्होंने अंग्रेजों की तरह सिर्फ ज़मीन पर हुक़ूमत नही की लोगो के दिलो पर हुक़ूमत की है। हर धर्म के लोगो को बराबर सम्मान दिया।  नफ़रती लोग जिस धर्म के आधार पर दोनो की तुलना करते है असल में दोनो ही धर्मनिरपेक्ष थे। अक़बर ने हिंदू सेनापति पर भरोसा जताया तो महाराणा प्रताप ने मुस्लिम सेनापति पर। इन दोनो को को सिर्फ एक लाइन में समझना हो तो, बस यूं समझ लीजिए अक़बर को पूरा हिन्दोस्तान जीतने का जुनून था, तो महराणा प्रताप को किसी के आगे ना झुकने की जिद। Tariq Azeem Tanha

दरगाह में तोड़फोड़ और गांधी जी की मौत के पीछे का रहस्य

पहली तस्वीर गांधी जी के क़त्ल के तीन दिन पहले की। दंगाइयों ने महरौली में हज़रत बख्तियार काकी रहमतुल्लाह एलैह के दरगाह में तोड़ फोड़ की और एक हिस्से में आग लगा दी थी। डर की वजह से लाखों मुसलमान पलायन कर रहे थे गांधी जी उन्हें समझाने पहुचे थे। अपनी ज़मीन अपना घर छोड़कर कहीं ना जाएं सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन कुछ भी ठीक नही हुआ। ना तो महरौली में मुसलमान रहे और ना ही गांधी जी तीन दिन बाद 30 जनवरी 1948 को गांधी जी का क़त्ल कर दिया गया। हिंदूवादी संगठन हमेशा से आतंकी गोडसे का बचाव करते आए हैं तर्क देते है की गांधी ने देश का बंटवारा कराया था इसलिए गोडसे ने मारा। इनसे कोई पूछे की 1946 और 1944 में गोडसे ने गांधी पर चाकू से जानलेवा हमला किया तब कौन सा बंटवारा हुआ था? हत्या के बाद गृह मंत्री सरदार पटेल ने गोलवलकर को लिखे एक पत्र में साफ तौर पर कहा था कि ‘उनके सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे थे। इस जहर के परिणामस्वरुप देश को गांधीजी के प्राणों की क्षति उठानी पड़ी और कुछ हिंदूवादी संगठन के लोगों ने गांधीजी की मृत्यु के बाद खुशी जाहिर की और मिठाइयां बांटीं। Tariq Azeem Tanha 

Reason Behind Winning of Vietnam

वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया। लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ। अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा... जाहिर सी बात है कि सवाल यही होगा कि आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया... ?? पर उस प्रश्न का दिए गए उत्तर को सुनकर आप हैरान रह जायेंगे और आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा। दिया गया उत्तर पढ़िये...!! सभी देशों में सबसे शक्ति शाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व् श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा।  और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की..!! आगे पत्रकार ने पूछा... "कौन थे वो महान राजा ?" मित्रों जब मैंने पढ़ा तब से जैसे मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया आपका भी सीना गर्व से भर जायेगा...!! वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया... "वो थे भारत के राजस्थान में मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप सिंह !!" ⚔महाराणा प्रताप का नाम लेते समय उनकी आँखों में एक वीरता भरी चमक थी..आगे उन्होंने कहा...!!