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Showing posts from August, 2021

पूर्ण चित्र । चंद्रशेखर आज़ाद । ChandraShekhr Aazad

#पूर्ण_चित्र  चंद्रशेखर आजाद जी को अपनी फोटो खिंचवाने से बड़ी चिढ़ होती थी लिहाज़ा बार - बार उनकी एकाध फोटो ही हमारे आसपास घुमती रहती हैं ।  आइए जानते हैं उस बेहद लोकप्रिय फोटो के बारे में जिसमें आजाद अपने मूंछों पर ताव देते नजर आते हैं ।  काकोड़ी कांड के बाद अंग्रेज हाथ धोकर इस डाके में संलिप्त क्रांतिकारियों के पीछे पड़ गए थे । आजाद के साथियों की गिरफ्तारी का सिलशिला शुरू हो चुका था । चारों तरफ जासूसों का जाल बिछा हुआ था ।  आजाद जासूसों से बचते - बचते किसी तरह झांसी पहुंचे । वहां उन्होंने रूद्रनारायण सिंह " मास्टर जी " के आवास में शरण ली । मास्टर जी का आवास कला - संस्कृति और व्यायाम का केंद्र हुआ करता था । सरकारी जासूसों और नौकरशाहों का भी आना - जाना वहां लगा रहता था । इसलिए आजाद ने वहां रूकना मुनासिब नहीं समझा । लाख मना करने के बावजूद भी वह पास के जंगल में एक छोटे से हनुमान मंदिर के पुजारी बनकर रहने लगे ।  फिर एक दिन आजाद को मास्टर जी अपने आवास पर ले आये । कला - प्रेमी होने के साथ - साथ मास्टरजी फोटोग्राफी भी कर लिया करते थे ।  बहुत देर से मास्टरजी आजाद को बिना

खामोशी ही सबसे बेहतर

आप अक्सर ऐसे लोगों से मिलते होंगे जो अपनी अभिव्यक्तियों में बेहद मुखर होते हैं। उनके पास हमेशा बातों का असीम भंडार होता है। किसी भी बातचीत में वे सुनते कम और बोलते ज़्यादा हैं। उन्हें किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखने में कोई संकोच या झिझक महसूस नहीं होती। आमतौर पर ऐसे लोगों को स्मार्ट व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जाता है और अधिकांश लोग चाहते हैं कि वे भी उन्हीं की तरह निस्संकोची तथा मुखर व्यक्तित्व के धनी हों। दूसरी तरफ, आपने कुछ ऐसे व्यक्तियों को भी देखा होगा जो आमतौर पर चुप रहते हैं। जिस मुद्दे पर मुखर व्यक्ति आपस में लड़ने-झगड़ने की मुद्रा में दिखाई पड़ते हैं, उन मुद्दों पर भी ये व्यक्ति एकदम शांत बने रहते हैं। आमतौर पर धारणा यही है कि मौन रहने वाले व्यक्तियों का व्यक्तित्व दबा हुआ होता है और प्रायः कोई भी व्यक्ति खुद को इस वर्ग में शामिल नहीं होने देना चाहता। अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को बचपन से ही मुखर होना सिखाते हैं और अगर कोई बच्चा शांत रहता हो तो यह उसके परिवार के लिये चिंता का सबब बन जाता है। आपमें से कुछ पाठक भी ऐसे होंगे जो सामान्यतः चुप रहना पसंद करते होंगे और उन्हें अपने श

अजब-गजब भारतीय

1 भारतीय ने जॉब छोड़कर कनाडा के 1 बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में सेल्समेन की नोकरी ज्वाइन की। बॉस ने पूछा- तुम्हे कुछ तज़ुर्बा है? उसने कहा कि हा थोड़ा बहुत है  पहले दिन उस भारतीय ने पूरा मन लगाकर काम किया। शाम के 6 बजे बॉस ने पूछा:- आज पहले दिन तुमने कितने सेल किये? भारतीय ने कहा कि सर मैंने 1 सेल किया। बॉस चौंककर बोले:- क्या मात्र 1 ही सेल। सामान्यत: यहाँ कार्य करने वाले हर सेल्समेन 20 से 30 सेल रोज़ाना करते हैं। अच्छा ये बताओं तुमने कितने रूपये का सेल किया। 93300 पाउंड्स। भारतीय बोला। क्या!  लेकिन तुमने यह कैसे किया? आश्चर्यजनक रूप से बॉस ने पूछा। भारतीय ने कहा:- 1 व्यक्ति आया और मैंने उसे एक छोटा मछली पकड़ने का हुक बेचा। फिर एक मझोला और फिर अंततः एक बड़ा हुक बेचा। फिर उसे मैंने 1 बड़ी फिशिंग रॉड और कुछ फिशिंग गियर बेचे। फिर मैंने उससे पूछा कि तुम कहा मछली पकड़ोगे और उसने कहा कि वह कोस्टल एरिया में पकड़ेगा।  तब मैंने कहा कि इसके लिए 1 नाव की ज़रूरत पड़ेगी। अतः मैं उसे नीचे बोट डिपार्टमेंट में ले गया और उसे 20 फीट की डबल इंजन वाली स्कूनर बोट बेच दी। जब उसने कहा कि यह बोट उसकी वोल्कस वेगन

13 अगस्त मुरादाबाद दंगा | इंदिरा गांधी | नरेंद्र मोदी

नोट- ये जितनी भी बातें मैंनें लिखी है ये मुझे एक ट्रैन यात्रा के दौरान किसी प्रोफेसर ने बताई थी, वह व्यक्ति मुझे धार्मिक के साथ व्यक्तिगत तौर भी खरा इंसान लगा था, मुझे (यानी तारिक़ अज़ीम 'तनहा' को) आगरा घूमने जाना था सफ़र लंबा था, कुछ उस व्यक्ति ने मुझे बात बताई कुछ मैंनें उसे अपने किस्से सुनाये लेकिन उसने एक अपनी ज़िंदगी से जुड़ा हुआ किस्सा ऐसा सुनाया की जिसे सुनाते हुए वह व्यक्ति बहुत रोया और आज 1947 से आज तक हो रहे एलेक्शन्स में वोट बैंक कैसे बनाया जाता है उसे सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। चूंकि मैं एक शायर और लेखक भी हूँ तो मैंनें उस दिन को जस के तस आपके सामने रख दिया है, आप यह उसकी जिंदगी से जुड़ा हुआ किस्सा पढ़िए। 13 अगस्त 1980 तारीख़ का वो दिन है, जिसे भूल पाना मुश्किल है, ये वो दिन था जब #मुरादाबाद ईदगाह में सैकड़ों #नमाज़ियों को गोलियों से भून दिया गया था, ये अलग बात है कि आज उसकी बरसी है और सोशल मीडिया पर सन्नाटा है, इस नरसंहार पर खामोशी की सबसे बड़ी वजह शायद आपको मालूम ना हो, लेकिन इस खामोशी की सबसे बड़ी वजह ये है कि ये नरसंहार बाक़ायदा #कांग्रेस की देखरेख में हुआ था, और ये कोई ह

सुन लो आज़ाद भारत के नागरिको इसे कहते है गुलामी।

 बिजली ईजाद नहीं हुई और सीलिंग फैन वग़ैरह की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी तब "अंग्रेज़ बहादुर" खास टाइप का कपड़ा कमरे में लटका कर उसकी डोरी कमरे के बाहर ग़ुलामों के पैरों में बांध दिया करते थे और बारी-बारी दिन रात अपने पैरों को हिलाते रहना ग़ुलामों का काम होता था...इस बात का ख़ास़ ख़याल रखा जाता था कि ग़ुलाम कान से बहरे हों ताकि उनकी बातों को सुन ना सकें... अंग्रेज़ों के ज़माने में ICS अधिकारी रहे "क़ुदरतुल्ला शहाब" अपनी किताब 'शहाब नामा' में लिखते हैं कि जब उन ग़ुलामों को नींद लगती तो अंग्रेज़ कमरे से निकल कर जूते पहनकर पेट पर वह़शियों की तरह वार करते थे जिससे गुलामों के पेट फटकर आतड़ियां तक बाहर आ जाती थीं और वह मर जाते थे...जुर्माने के तौर उस अंग्रेज़ से ब्रिटिश अदालत मात्र 2₹ वसूल करती थी...ना जेल ना ही कोई और सज़ा... आज उनकी ही औलादें आज हमें "इंसानियत का मंजन" बेचती हैं.. यह उसी वक़्त की एक शर्मनाक तस्वीर है। तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Bachpan Ka Pyaar | Baashah | Bhool Nahi Jana Re

विचारणीय विषय  आइकन्स.... आज की तारीख तक चाइना 38 गोल्ड के साथ 87 मेडल लेकर शीर्ष पर है। अमेरिका 36 गोल्ड सहित 108 मेडल के साथ द्वितीय, जापान 27 गोल्ड 56 मेडल के साथ तीसरा और ब्रिटेन 20 गोल्ड 63 के साथ पाचवे ऑस्ट्रेलिया 17 गोल्ड 46 मेडल लेकर छठे नम्बर पर है और भारत 1 गोल्ड 2 सिल्वर, 4 ब्रांज के साथ 7 मेडल लेकर 47 स्थान पर है। और हमारे यहां ट्रेंड कर रहा है "जानू मेरी जानेमन बचपन का प्यार मेरा भूल न जाना रे।" एक मुख्यमंत्री उस बच्चे से मिलकर उसे सुपरस्टार का दर्जा दे रहा है। मानो वह टोक्यो से गोल्ड ले आया हो। इसमें गलती उस बच्चे की भी नहीं है, वह तो बस एक मोहरा भर है। इसके पीछे पूरी एक टीम लगी होगी, जो जबर्दस्ती उसे सुपरस्टार बनाने पर तुली है। ताकि उसे बच्चों का आइडल बनाया जा सके। क्योंकि आजकल हर बच्चे के हाथ स्मार्टफोन है। स्कूल बंद हैं सो भरपूर टाइम भी है। जिस उम्र में चीन, अमेरिका, थाई, मलेशियाई बच्चे स्पोर्ट स्कूल में दाखिला लेकर अपने गोल्ड वाले सपने की तरफ पहला कदम बढ़ाते हैं। उस उम्र है हमारे बच्चे आजकल टिकटोक टाइप वीडियो बनाना सीख रहे हैं। पुनः कहूंगा गलती उनकी नहीं बल्क

यूपी बोर्ड के रिजल्ट के हवाले से पिताजी से एक गुफ़्तुगू।

रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो  (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।  दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे।  जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !! रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...  और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट" पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से न

जानिए लोटा और गिलास के पानी में अंतर।

जानिए लोटा और गिलास के पानी में अंतर भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये गिलास जो है विदेशी है, गिलास भारत का नही है। गिलास यूरोप से आया और यूरोप में पुर्तगाल से आया था. ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये. गिलास अपना नही है अपना लोटा है और लोटा कभी भी एकरेखीय नही होता तो वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका त्याग कीजिये वो काम के नही हैं, इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है. इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे। फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही गुण उसमें आते है। पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं, जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं। दही में मिला दो तो छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा। दूध में मिलाया तो दूध का गुण, लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा। अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा। और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम र

Micheal Phelps | माइकल फिलिप

ओलंपिक और विश्वगुरू.... टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में कल शामतक भारत अंडर 50 में भी नहीं था! फिर सूबेदार नीरज चोपड़ा ने पूरे दम के साथ भाला फेंका और हम 67वें पोजिशन से 20 अंकों की उछाल लेकर सीधे 47वें पोजिशन पर आ गए! एक गोल्ड मैडल और 20 अंकों की उछाल!!! 138 करोड़ की आबादी वाला देश कल से सीना फुलाए घूम रहा है! क्रेडिट लेने देने की होड़ सी मची हुई है! हर किसी में सूबेदार साहब से जुड़ने की ललक दिखाई पड़ रही है! क्योंकि उन्होंने गोल्ड दिलाया है! 138 करोड़ की आबादी में मात्र एक स्वर्ण पदक!!  क्या ये गर्व का विषय है? पदक तालिका पर नजर डालेंगें तो आप पाएंगे कि हम कुल 7 ओलंपिक पदकों (स्वर्ण, रजत और कांस्य) के साथ 47वें स्थान पर हैं!  ....और जो देश प्रथम (चीन-38 स्वर्ण पदक)  द्वितीय (USA-36 स्वर्ण पदक व तृतीय स्थान (जापान-27 स्वर्ण पदक) पर हैं उनके सिर्फ स्वर्ण पदकों की संख्या हमारे कुल पदकों की संख्या से लगभग 4 गुनी या 5 गुनी है! शीर्ष पर बढ़त बनाये हुए इन देशों के साथ ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ खेलों में ही अच्छा कर कर रहे हैं और बाकी क्षेत्रों में फिसड्डी हैं!  इनकी विकास दर, औद्यिगिक