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Showing posts from October, 2018

तआल्लुक़ इतना तो था।

मुहब्बत ना थी मगर ताआल्लुक़ इतना तो था, हँसकर कभी हमसे बात वो करता तो था! मेरी जान था वो, मैं उसे सितमगर नही कहता, और ये भी बात सच के वो बेवफा तो था, ये बात और के अब ताल्लुक़ भी नही उससे, वरना इक वक्त पहले उससे कोई रिश्ता तो था! मैं उसे दिल का रहजन कह दूं नही मुमकिन, मुहब्बत के सफर में वो कुछ दूर चला तो था! दिल की क़ुर्बत में रहा, राज़-ओ-सुखन ले गया, दिल के बहुत करीब से 'तनहा' गुज़रा तो था! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Na मालूम

मेरे जुनु का नतीजा ज़रूर निकलेगा इसी सियाह समुन्दर से नूर निकलेगा गिरा दिया है जो साहिल पर इंतज़ार ना कर अगर वो डूब गया तो दूर निकलेगा उसी का सहर वही मुद्दई वही मुंसिफ हमें यकींन था हमारा कसूर निकलेगा यकींन न आये तो एक बार पूछ कर तो देखो जो है रहा है वो जख्मो से चूर निकलेगा

उम्र गुज़र जाती हैं

उम्र   गुज़र जाती  हैं सँवरने में, जिंदगी में  कुछ  नया करने में! कहाँ  हैं  वो मज़ा जीने में यारो, जो  लुत्फ़  हैं  वतन पे मरने में! शायरी लिखना कोई खेल नही, उम्र  बीत  जाती हैं निखरने में! कारस्तानी भी मालूम पड़ती हैं, नशा  चढ़ने में, नशा उतरने में! 'तन्हा'  करता हैं अदा से कत्ल, मज़ा आता हैं धीरे धीरे मरने में! तारिक़ अज़ीम 'तनहा'