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तआल्लुक़ इतना तो था।

मुहब्बत ना थी मगर ताआल्लुक़ इतना तो था,
हँसकर कभी हमसे बात वो करता तो था!

मेरी जान था वो, मैं उसे सितमगर नही कहता,
और ये भी बात सच के वो बेवफा तो था,

ये बात और के अब ताल्लुक़ भी नही उससे,
वरना इक वक्त पहले उससे कोई रिश्ता तो था!

मैं उसे दिल का रहजन कह दूं नही मुमकिन,
मुहब्बत के सफर में वो कुछ दूर चला तो था!

दिल की क़ुर्बत में रहा, राज़-ओ-सुखन ले गया,
दिल के बहुत करीब से 'तनहा' गुज़रा तो था!

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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