उम्र गुज़र जाती हैं सँवरने में,
जिंदगी में कुछ नया करने में!
कहाँ हैं वो मज़ा जीने में यारो,
जो लुत्फ़ हैं वतन पे मरने में!
शायरी लिखना कोई खेल नही,
उम्र बीत जाती हैं निखरने में!
कारस्तानी भी मालूम पड़ती हैं,
नशा चढ़ने में, नशा उतरने में!
'तन्हा' करता हैं अदा से कत्ल,
मज़ा आता हैं धीरे धीरे मरने में!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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