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Showing posts from April, 2022

आया कहाँ से था वो

आया कहाँ से था वो और किधर वो गया था, वो शख़्स जिस्मे-वक़्त पर मानिंदे-हवा था। होता है क्या मक़तलों में सब देख रहा था, मैं अपने जिस्म से निकलके कुछ दूर खड़ा था। सबका यहाँ पे इश्क़ अलहदा है जाँ-बा-जाँ, तुम्हें इश्क़ कोई और हमें कुछ और हुआ था। वो कौन था जो मुझमें बिछड़ गया है आज, वो कौन था जो मुझमें मानिंदे-क़ज़ा था। बहने लगा वो आँख से चश्मों की तरह फिर, जो अश्क़ मेरी पलकों पे कई रोज़ रुका था। कुछ भी नहीं है यहाँ हमें हासिल-ए-ज़िंदगी, बस माज़ी के दरीचों में कुछ ठहरा हुआ था। खुद पर न तारी कीजियो दौलत के दुःख हज़ार, हर शख़्स जहाने-फ़ानी से 'तनहा' गया था। तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
  तो आप शाइरी सीखना चाहते हैं? अब ये कोई सिलेबस को पढ़ने की तरह सीधा सीधा काम होता तो हर साल शाइर झुँड में ग्रैजुएट होते। पर ऐसा भी नहीं कि ये इतना मुश्किल है। मुश्किल यहाँ शाइरी के नियम कतई नहीं हैं, बल्कि मुश्किलात नियम सीखने के बाद अपने अंदर शाइरी लाने की है। ज़्यादातर लोगों के अंदर शाइरी जाना ही नहीं चाहती। ऐसा इसलिए क्यूँकि वो अकेले नहीं जी सकते, वो अपने आप से बाहर दुनिया नहीं देख सकते, ज़्यादातर लोग बस लोग होते हैं, शाइर नहीं। हर आदमी जिसको ये लगता है कि उसके लिए सबसे ज़रूरी आदमी वो खु़द है, वो कभी शाइरी नहीं कर सकता। न ही वो कर सकता है जिसे आज तक मालूम ही नहीं चला कि उसे महसूस होता क्या है और क्या नहीं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने शाइरी के नियम तो जान लिए पर शाइरी की समझ कभी न पा सके। पर उन्होंने हार नहीं मानी, वो शेर कहते रहे। मुझे ऐसे लोग निहाँ फिज़ूल लगते हैं। अगर आपको पता चलता है कि आप कभी शाइर नहीं हो सकते तो क्यों मानव जाति का वक्त बर्बाद कर रहे हैं, हराम की ज़िन्दगी की तलब़ क्यों है आपको। जाइए कुछ और रोज़गार देखिए।  खैर जिन लोगों को ये जानना है कि शाइरी कब की जाए उनके लि