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आया कहाँ से था वो

आया कहाँ से था वो और किधर वो गया था,
वो शख़्स जिस्मे-वक़्त पर मानिंदे-हवा था।

होता है क्या मक़तलों में सब देख रहा था,
मैं अपने जिस्म से निकलके कुछ दूर खड़ा था।

सबका यहाँ पे इश्क़ अलहदा है जाँ-बा-जाँ,
तुम्हें इश्क़ कोई और हमें कुछ और हुआ था।

वो कौन था जो मुझमें बिछड़ गया है आज,
वो कौन था जो मुझमें मानिंदे-क़ज़ा था।

बहने लगा वो आँख से चश्मों की तरह फिर,
जो अश्क़ मेरी पलकों पे कई रोज़ रुका था।

कुछ भी नहीं है यहाँ हमें हासिल-ए-ज़िंदगी,
बस माज़ी के दरीचों में कुछ ठहरा हुआ था।

खुद पर न तारी कीजियो दौलत के दुःख हज़ार,
हर शख़्स जहाने-फ़ानी से 'तनहा' गया था।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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