क़रीब 1260 साल पहले, दक्षिण-पूर्वी कज़ाख़्सतान की वादी-ए-तालास में क़दीम शहर अतला के क़रीब एक बहुत बढ़ी जंग हुई, जिस में एक तरफ़ ख़िलाफ़ते अब्बासिया की फ़ौज और तुर्किस्तान के ख़ानात की फ़ौज थी और दूसरी तरफ तांग साम्राजय की चीनी फ़ौज थी।ये जंग सेंट्रल एशिया के कंट्रोल को लेकर थी जो दरहक़ीकत दो तहज़ीबों का टकराव था।
751 ई० में दरयाए तालास के मुक़ाम पर होने वाली इस जंग को चीन और अरब तारीख़ की वाहिद जंग तसव्वुर किया जाता है।दो तहज़ीबों के इस टकराव ने ना सिर्फ़ सेंट्रल एशिया के ख़ित्ते को मुतासिर किया, बल्कि इस जंग ने पश्चिम की और हो रहे चीनी साम्राज्य के फैलाव(विस्तार) को रोक दिया चूँकि सेंट्रल एशिया के बेशतर हिस्सों पर मुसलमानों की हुकूमत थी। लेकिन चीन फिर भी कुछ अहम खित्तों को अपने पास रखा जो कि किर्गिज़स्तान के कुछ हिस्से थे, चीन हमेशा अपना खोया हुआ असरों रुसूख़ हासिल करने की ख्वाहिश रखता था, उस ने उमय्यद सल्तनत में पेश आने वाले बहरान और झगड़ों का फ़ायदा उठाया चूँकि रियासत उस वक़्त इंक़लाब के खिलाफ़ लड़ने में मसरूफ़ थी। चीन ने कमांडर शियांज़ी की क़यादत में एक फ़ौजी मुहिम भेजी जिससे उज़बेकिस्तान और काबुल जैसे शहरों को भी ख़तरा लाह़क हो गया।
अब्बासी ख़िलाफ़त का इसतहकाम
अबबासी ख़िलाफ़त ने अपनी सराहदों का महफ़ूज़ बनाने का सोचा चुनाचे ख़लीफ़ा अबु जाफ़र अल-मंसूर ने अबु मुसलिम ख़ुरासानी और उसके सरपरस्तों को ख़ुरासान की तैयारी के लिए रवाना किया, पूर्वी तुर्किस्तान (यानी सेंट्रल एशिया) में मुसलमानों के वकार को बहाल करने के लिये एक मुहिम चलायी, चुनाचे अबु मुस्लिम ने एक फ़ौज को लैस किया और ’मरवह’ शहर की तरफ़ रवाना हुआ और वहाँ सूबा तख़ारस्तान से इमदादी फ़ौजें पहुँची(ये इलाक़ा अफ़ग़ानिस्तान में वाकिअ है)। अबु मुस्लिम ने फिर इस लश्कर के साथ समरकंद को कूच किया और उसकी फ़ौज ज़ियाद इब्ने सालिह की फ़ौज के साथ शामिल हो गयी, ज़ियाद इब्ने सालिह कूफ़ा के गवर्नर थे, ज़ियाद इब्ने सालिह ने फ़ौज की क़यादत सँभाल ली।
तालास की जंग के वाक़ियात
चीनी ज़राए के मुताबिक़ चीनीयों ने 30 हज़ार जंगजुओं को इकठ्ठा किया जबकि अरब ज़राए के मुताबिक़ जंगजुओं की तादाद एक लाख थी। ज़ाओ शियांज़ी चीनी फ़ौज का सरबराह था और जुलाई 751 ई० में चीनी फ़ौज और मुसलमान फ़ौज की जंग हुई। तालास या तरार, किर्गिज़स्तान में दरयाए तालास पर वाकिअ है।
इस्लामी फ़ौज की चीनी फ़ौज से झड़प हुई और मुस्लिम जंगजुओं ने पूरी चीनी फ़ौज को घेरे में ले लिया। इस की वजह से चीन की तरफ़ से हज़ारों हलाकतें हुईं और “ज़ाव शियांज़ी” अपनी फ़ौज को कटता देखकर जंग से फ़रार हो गया।
जहाँ तक ज़ियाद इब्ने सालिह का ताल्लुक़ है उसने बचें हुए चीनी फ़ौजियों को गिरफ़्तार कर लिया और बग़दाद भेज दिया, गिरफ़्तार हुए चीनी फ़ौज़ियों की ताज़ा क़रीब 20 हज़ार थी, इन फ़ौजियों को बग़दाद में ग़ुलामों के बाज़ार में फ़रोख़्त कर दिया गया।
तालास की जंग की अहमियत
इस जंग की अहमियत ये है कि ये पहली और आख़िरी फ़ौजी जंग थी जो मुसलमानों और चीनीयों के दरमियान हुई, इस जंग के बाद किर्गिज़स्तान मुसलमानों के हाथ में चला गया और सेंट्रल एशिया में चीन का असरो रसूख़ ख़त्म हो गया। ये ख़ित्ता अब इस्लामी रंग से रंगा हुआ था, इस के बेशतर क़बाइल ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया था जिसके बाअिस ये इस्लामी तहज़ीबी इलाक़ा बन गया, और इस ख़ित्ते ने इमान बुख़ारी, इमाम तिरमिज़ी और इमाम अबु हनीफ़ा जैसे अज़ीम उलमा को जन्म दिया। पूर्वी इस्लामी ममालिक में चीनी काग़ज़ की आमद हुई जब मुसलमानों ने बढ़ी तादाद में चीनी काग़ज़ निर्माताओं को पकड़ कर बग़दाद मुंतकिल कर दिया।
इस जंग के आख़िर तक इस्लाम सेंटर्ल एशिया के ममालिक में। तेज़ी से फैल गया और चीनी प्रभाव अपनी इस्लाम मुख़ालिफ़ नज़रियात के साथ ख़त्म हो गया।
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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