छिपकर शायरी पढ़ती हो,
यक़ीनन इश्क़ करती हो!
बाम पर आती हो क्यो,
किसके लिए संवरती हो!
क्लास में और भी सब हैं,
मुझे क्यो देखा करती हो!
लिखा मगर जाता नही,
कोशिश बहुत करती हो!
बस गयी हो इन आंखों में,
मेरे ही घर में रहती हो!
जां छिड़कते हैं तुमपे सब,
तुम किसपे छिड़कती हो!
कहती भी नही इश्क़ नही!
और हाँ भी नही करती हो!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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