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छन्द मुक्त कविता

हज़ारो की भीड़ में मिली थी वो
बस ऐसे ही बात
की तो अच्छा लगा,
हालांकि उसका प्रथम वर्ष था
तो मैंने उसे थोडा सहारा दिया
उसका काम था फोटोग्राफी
उसके अंदर एक ललक थी,
उसकी बातो से लगता था
की वो आकाश को छूना
चाहती हैं, इन हवाओ में
खुशबू खोलना चाहती हैं!
वो चाहती हैं की कॉलेज
में उसे पहचान मिले, उसका
नाम मिले। बस यही जान
पाया हूँ अब तक उसका दिल बहुत
अच्छा हैं, ईर्ष्या, नफरते उससे
बहुत दूर हैं, आखिर सबकी
लाड़ली जो हैं, कॉलेज में सब उसे
बहुत पसंद करते हैं! मानवता का
उदाहरण समझ लीजिये, अपने
नाम की तरह उसकी बातो में भी
खुशबू हैं, बिलकुल बच्ची सी
हैं, प्यारी भी और मैं तो उसे तो उसे
बच्चे-बच्चे कहकर ही बात करता
हूँ।

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