नज़र में तिरी नश्तर ढूंढ रहा था,
क़त्ल में इतना असर ढूंढ रहा था!
खेलने लगा बच्चा बनके बच्चों में,
दिल जश्न का मंज़र ढूंढ रहा था!
सुर्ख ज़ुबाँ से हुआ दिल फ़िगार,
फिर भी वो खंजर ढूंढ रहा था!
तेरे जाने से उजड़ा शहर ऐ दिल,
जमीं दिल की बंजर ढूंढ रहा था!
जुमलेबाजी-ओ-गुफ़्तार करके,
वो शख्स ऐसे बसर ढूंढ रहा था!
दर्द उतारा कलम से 'तनहा' ने,
अंदर एक सुख़नवर ढूंढ रहा था!
मैंने निजोड़ दिया खून दिल से,
कुछ पानी समंदर ढूंढ रहा था!
अloनE पोET
शायर तनहा
Comments
Post a Comment