तारिक को सबक सिखाने में,
हम फिर लगे हैं दीया जलाने में!
तारिक-तीरगी,अँधेरा
राज़दार मेरा दुश्मन था लेकिन,
ऐब नहीं खोले उसने ज़माने में!
तूने उस गुल को क्यों तोड़ दिया,
जो लगा था तेरा घर सजाने में!
महब्बत गर किसी से हो जाए,
वक़्त लग ही जाता हैं जताने में!
वो खुद को ही गधा मान चूका,
जिसे लोग लगे हैं शेर बनाने में!
रात मुझसे रात यूँ बोली की,
क्या हासिल है अश्क़ बहाने में!
वो मुझे इक पल में छोड़ गया,
जिसेउम्र गुज़रीअपना बनानेमें!
नासेह तू तो खिलाफे-मय था,
तू क्यू लगा है शराब पिलाने में!
मुसव्विर ने भी दम ना लिया,
तस्वीरको मेरी तनहा बनानेमें!
मुसव्विर-पेंटर
तारिक़ अज़ीम तनहा
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