उसे जरूर ही किसी ने रुलाया होगा,
तभी उसकी चश्म में आंसू आया होगा!
उसकी बू जानता हूँ वो नहीं हो सकता,
मेरा दरवाज़ा हवाओ ने हिलाया होगा!
उसे डर लगता था सर्दी में नहाते हुए,
मौसम-ए-तपिश में वो नहाया होगा!
कुछ तो था, यु ही नहीं था मैं 'तनहा',
आरज़ू को मेरी जिन्दा जलाया होगा!
चश्मे-महताब उस शख्स पर ही रही,
चाँद से भी खूब उसका साया होगा!
हर वक़्त करता था वो रश्के-तन्हाई,
तन्हाईयो में उसने सुकून पाया होगा!
दर्दे-करम उनके कैसे भूल जाए भला,
दिले-खुबान ने ये दर्द दिलाया होगा!
तारिक़ अज़ीम तनहा
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