क्या तुम्हे बताऊँ के कितना लाजवाब हैं वो,
मेरे हर सवाल का आखिर जवाब हैं वो!
यूँ तो सभी चीज़े ख़्वाब में रक़्स करती हैं,
पर जो मयस्सर नही मुझे ऐसा ख़्वाब हैं वो!
उसे देखता हूँ तो मदहोशी छाने लगती हैं,
कदम बहकने लगते हैं ऐसी शराब हैं वो!
वो ना मिलेगा फिर भी हैं उसी की जुस्तुजू,
ना जाने मेरे लिए कैसा इंतिखाब हैं वो!
उसके जज़्बात हैं पेचीदा मगर सादगी भरे हुए,
और 'तनहा' कहता हैं खुली किताब हैं वो!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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