नज़्म: तन्हाई की भीड़ दुनिया चीख़ती है। हर तरफ़ हुजूम है। अल्फ़ाज़ो की आँधियाँ है, तस्वीरों की बारिशें है, क़हक़हों का शोर है, और फिर भी दिल एक दम सुनसान है- मैं मुस्कुराता हूँ, हँसता हूँ, महफ़िलों में बैठता हूँ — मगर अंदर कहीं, एक सन्नाटा है, ऐसा सन्नाटा जो शहर के सब बाज़ारों को चुप करा दे। मोबाइल की स्क्रीन पर जगमगाते नाम, पैग़ामात के हुजूम, दिल बहलाने वाले खेल, और फिर भी, हम सब तन्हा है, ख़ाली है, बेचराग़ है, बेचारे है। कहाँ हैं वो ख़त, जो धड़कनों की ख़ुशबूए रखा करते थे? कहाँ हैं वो आँखें, जो सवाल किए बग़ैर समझ जाती थीं? हमने सहूलत के बदले ख़ुलूस बेच डाला है, रफ़्तार के बदले सुकून हार दिया है मुस्कुराहटों के बदले दिलों की गहराइयाँ गुम कर बैठे है। मैं आज भी कभी-कभी चुपके से किसी कोने में बैठ कर अपने दिल को टटोलता हूँ, कि शायद कोई बोसीदा ख़्वाहिश, कोई बिछड़ा हुआ जज़्बा अभी कहीं राख में साँस ले रहा हो। तो, ए मेरे अहद के थके हुए मुसाफ़िरो! कभी फ़ुर्सत मिले तो अपने दिल की गलियों में लौट आना। वहीं कहीं, ख़ामोशी की ओट में, की शायद अभी भी मुहब्बत का कोई चराग़ टिम...
नज़्म: तन्हाई की भीड़ दुनिया चीख़ती है। हर तरफ़ हुजूम है। अल्फ़ाज़ो की आँधियाँ है, तस्वीरों की बारिशें है, क़हक़हों का शोर है, और फिर भी दिल एक दम सुनसान है- मैं मुस्कुराता हूँ, हँसता हूँ, महफ़िलों में बैठता हूँ — मगर अंदर कहीं, एक सन्नाटा है, ऐसा सन्नाटा जो शहर के सब बाज़ारों को चुप करा दे। मोबाइल की स्क्रीन पर जगमगाते नाम, पैग़ामात के हुजूम, दिल बहलाने वाले खेल, और फिर भी, हम सब तन्हा है, ख़ाली है, बेचराग़ है, बेचारे है। कहाँ हैं वो ख़त, जो धड़कनों की ख़ुशबूए रखा करते थे? कहाँ हैं वो आँखें, जो सवाल किए बग़ैर समझ जाती थीं? हमने सहूलत के बदले ख़ुलूस बेच डाला है, रफ़्तार के बदले सुकून हार दिया है मुस्कुराहटों के बदले दिलों की गहराइयाँ गुम कर बैठे है। मैं आज भी कभी-कभी चुपके से किसी कोने में बैठ कर अपने दिल को टटोलता हूँ, कि शायद कोई बोसीदा ख़्वाहिश, कोई बिछड़ा हुआ जज़्बा अभी कहीं राख में साँस ले रहा हो। तो, ए मेरे अहद के थके हुए मुसाफ़िरो! कभी फ़ुर्सत मिले तो अपने दिल की गलियों में लौट आना। वहीं कहीं, ख़ामोशी की ओट में, की शायद अभी भी मुहब्बत का कोई चराग़ टिम...