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औरंगजेब ने बचाई थी एक पंडित की बेटी की इज़्ज़त

महान शासक औरंगजेब द्वारा किया गया एक ऐसा इन्साफ , जिसे देश की जनता से छुपाया गया l औरंगज़ेब काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद (धनेडा की मस्जिद) यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से (चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो) मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक मिटाया नहीं जा सकेगा…।औरंगजेब आलमगीर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था, उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, और उसके बाप से कहा के तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे 7 दिन में भेज देना…. पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही, उनके पास कोई रास्ता नहीं था और पंडित से बेटी ने कहा के 1 महीने का वक़्त ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा…। पंडित ने सेनापति से जाकर कहा कि, “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं के मैं 7 दिन में सजाकर लड़की को भेज सकूँ, मुझे महीने का वक़्त दो.” सेनापति ने कहा “ठीक है! ठीक महीने के बाद भेज देना” पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा “वक़्त मिल गया है अब?”लड़की ने मुग़ल सहजादे का लिबास पहन...
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Aurangzeb’s Tomb: A Political Pawn or a Progress Blocker?" औरंगज़ेब की कब्र: राजनीतिक मोहरा या प्रगति में रुकावट?

औरंगज़ेब की कब्र: राजनीति का खिलौना या प्रगति में रुकावट? औरंगज़ेब, मुगल साम्राज्य का छठा बादशाह, 1707 में मर गया था, लेकिन उसकी साधारण सी कब्र आज भी भारत में हलचल मचाए हुए है। महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित यह कब्र कुछ राजनीतिक दलों और समूहों के लिए विवाद का केंद्र बन गई है। कुछ इसे "मुगल अत्याचार" का प्रतीक मानकर हटाने की मांग कर रहे हैं, तो कुछ इसे इतिहास का हिस्सा बताकर बचाव कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या औरंगज़ेब मरने के बाद भी भारत की तरक्की में रोड़ा बना हुआ है? या फिर यह सब खोखले राष्ट्रवाद का दिखावा है, जिसे कुछ पार्टियाँ अपने फायदे के लिए भुना रही हैं? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझें—आज की राजनीति, औरंगज़ेब के समय भारत के पास कितना धन था, और आज की स्थिति क्या है। कब्र को लेकर आज की सियासत औरंगज़ेब का शासन (1658-1707) अपने समय में विशाल और शक्तिशाली था, लेकिन विवादों से भरा भी था। उसने गैर-मुस्लिमों पर जज़िया कर फिर से लागू किया, कुछ मंदिरों को तोड़ा, और सख्त इस्लामी नीतियाँ अपनाईं, जिसके चलते वह इतिहास में एक ध्रुवीकरण करने वाला शासक बन गया। आज, 2025 में, उ...

मदरसा शिक्षा में AI और फ्यूचर स्किल्स की ज़रूरत

मुसलमानों को बस यह प्रण लेना है कि जिस मदरसे में AI नहीं सिखाया जा रहा वहां चंदा नहीं देंगे भारत में मुसलमानो का मदरसा सिस्टम फीस से कम और चंदा से ज्यादा चलता है। एक अलिखित और अनौपचारिक नियम यह है कि  " हे मुसलमानों, हम मदरसा का देख रख करने वाले सभी उस्ताद तुम्हारे मुस्लिम समाज के गरीब बच्चों को खाना, रहना और शिक्षा देते है। यह बच्चे कल धार्मिक नेतृत्व को संभालेंगे और तुम्हारे लिए मस्जिदों में इमाम बनकर धर्म की खिदमत करेंगे। तुम अपना बच्चा तो धर्मगुरु बना नहीं रहे हो और इनके मां बाप, जो अभी गरीब है इनको कुछ भी बनाने की काबिलियत नहीं रखते, यदि ऐसा कुछ जेनरेशन चला तो तरावीह में कुरान पढ़ने वाला नहीं मिलेगा, मस्जिदों में इमाम नहीं मिलेगा और तुम सभी धार्मिक लिहाज से अनाथ हो जाओगे इसलिए तुम्हें चाहिए कि तुम इन बच्चों की फीस हमे दो हम इनको पढ़ाएंगे, लिखाएंगे, दीन की शिक्षा देंगे और समाज को धर्मगुरु देंगे" यही एक कारण है कि मुसलमान इस देश में टैक्स के साथ मदरसे में चंदे भी देता है। मुझे इस सिस्टम से कोई दिक्कत नहीं है बल्कि जो ऐसा कर रहा है वह मेरे लिए बहुत एहतराम का मका...

फ़हमी साहिब की विरासत: शायरी के लहजे का अनमोल ख़ज़ाना Fehmi Badayuni RIP

मेरे हिस्से के फ़हमी साहिब  ============== दोस्तो: रात के दस बजा चाहते हैं, फ़हमी साहिब की अचानक वफात का दुःख पहले से ज़ियादः शिद्दत इख्तियार कर रहा है.... कम-ओ-बेश इसी वक़्त बात हो जाती थी हम दोनों में अक्सर रात को..फिलहाल इज़्तराब की कैफयत है, जब तक कुछ लिख न लूं , राहत न मिले गी.. फुर्सत से फिर किसी रोज़, आज बस इतना ही जो कुछ ज़ेहन में आ पा रहा है.. मुझे नहीं पता के फ़हमी साहिब आप में से किस किस के दोस्त थे? किस के कितने करीब थे? अलबत्ता मेरे बहुत करीब थे, बहुत जियादा करीब.. बड़ी clarity थी कुछ बातों को ले कर हमारे बीच..अक्सर इख्तालाफ भी होता था. लेकिन अपनी इल्मियत की धोंस ज़माने वाला इख्तिलाफ नहीं, जैसे तेसे लड़ते भिड़ते किसी एक नुक्ते पे पहुँचने वाला इख्तालाफ..शायद इसी अपनेपन और दावेदारी के तहत मैं खुल कर उन के अशआर पे अपनी ईमानदार राय देता था..  मैं अपने शेरों पे, उन का दिया हुआ मशवरा एक मिनट में मान लेता था, और वो मेरा मशवरा दस सेकंड में..मेरे कितने अशआर और मिसरों की सेहत फ़हमी साहिब ने दुर्रुस्त की..उन के कितने अशआर आप तक पहुँचने से पहले मेरी नज़र से गुज़ारे गए .. हम दोनों एक दुसरे क...