राजपूत मुस्लिम कैसे बने ??? . ..... राजपूत क़ौम युद्ध में अपनी बहादुरी के लिये जानी जाने वाली क़ौम है, इसलिये मैं अक्सर सोचता था कि हमारे राजपूत पूर्वजों के जबरन मुसलमान बनाये जाने की जो अफवाहें सुनी जाती हैं वो सच कैसे हो सकती हैं, जबकि राजपूत युद्ध में हारने के बाद अपमान भरा जीवन जीने की बजाय ख़ुद अपना गला काटकर आत्मबलिदान देना पसन्द करते थे, इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलते हैं.. . फिर ये कैसे हो सकता है कि इन राजपूतों को कोई तलवार के बल पर जबरन मुसलमान बना दे, और ये बिना आस्था के इस्लाम अपनाने को अपनी नियति मान लें ?? .... पर इस बारे में कुछ साल पहले कुछ दिलचस्प जानकारी मिली, .... इतिहासकार भूप सिंह जी ने मुस्लिम राजपूतों के बारे में जो बताया वो बात सबसे ज़्यादा प्रमाणिक लग रही है कि पुराने समय में तुर्कों या मुगलों वगैरह से युद्ध होता था, तो योद्धा होने के नाते राजपूतों के अलावा कोई युद्ध में नही जाता था, .... यही राजपूत अगर प्रतिपक्ष द्वारा हराकर बन्दी बना लिए जाते थे, जब तक कि कोई सन्धि न हो, फिर जब साल छह महीने बाद ये राजपूत रिहा होकर अपने घर पहुँचते तो इनसे ये कहा ज
कुछ लोगों के ग़ज़ल सोचने का और लिखने का तरीक़ा धुन से जुडा होता है। मतलब कुछ ग़ज़लियात जो धुनों पर पर गाई जा चुकी हैं उन्हें गुनगुनाते हुए उसी लय पर और उसी बह्र में उनकी ग़ज़ल बन जाती है। यह तस्लीम-शुदा तरीक़ा है। इससे ग़ज़ल में रवानी भी आती है। इसमें एक ही छोटी सी दिक़्क़त यह होती है कि इनमें से बहुत से शोअरा उस बह्र में लिख नहीं पाते जिसे वह किसी धुन पर गुनगुना नहीं पाते। यह भी कोई इतना बड़ा मसअला नहीं है। ज़ियादातर शोअरा की ग़ज़लियात कुछ गिनी-चुनी बहूर में ही होती हैं, ऐसी बहूर जिनकी लय उनकी रूह में बस जाती है। मगर इन शोअरा में कुछ ऐसे हैं जो धुन पर लिखने के बा'द फिर वह ग़ज़ल बह्र में है या नहीं यह देखने की भी सलाहियत नहीं रखते, और अना इतनी है कि कोई बता दे कि भाई बह्र की ग़लती हुई है तब भी क़ुबूल नहीं करेंगे, कहेंगे "बकवास... पढ़ते वक़्त बिल्कुल कोई भी सकता नहीं लगा तो बे-बह्र कैसे हो गयी?" भई ख़ुश रहें, जैसा भी चाहे लिखें। कोई मसअला नहीं। अब आप पूछेंगे कि फिर मसअला क्या है? मसअला है वह शोअरा जो समझते हैं कि जिस ग़ज़ल को वह ख़ुद किसी धुन में बिठा नहीं सकते वह ग़ज़ल दर