ना देखूँगा किसी भी नज़र उस के बाद क्या
कर लूँगा उससे तंग गुज़र उस के बाद क्या।
मैं उसकी उल्फ़तों में तो हो जाऊँगा फ़ना
गरचे हुई न उसको ख़बर उसके बाद क्या
मैं तो बना भी लूँगा इसी दिल को ताज पर,
फिर भी न हो जो उसकी नज़र उस के बाद क्या
मंज़िल उदासी है रहे-गिरया है रात भर
और है बस अपना शेरो सफर उसके बाद क्या
लौटा जो बाद मरने के तनहा' के गरचे वो
बाद ए फ़ना ओ बाद ऐ गुज़र उस के बाद क्या
जंग का ख़्याल ठीक है पर सोच तो ज़रा
उजडेगा इसमें तेरा भी घर, उस के बाद क्या
जो इंकिलाब के थे वो हामिल चले गये,
धुँधला गयी है तंज़िमें शहर, उसके बाद क्या
तारिक़ अज़ीम भूल चुके मैकदे की राह ,
उनकी नहीं है ख़ैर-ख़बर उसके बाद क्या,
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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