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सारा शगुफ्ता Sara Shagufta

आज सारा शगुफ़्ता की विलादत का दिन है गुजरांवाला में पैदा हुयीं उन्हें पढ़ने लिखने का ख़ूब शौक़ था लेकिन इसके बावजूद मैट्रिक भी पास न कर सकीं उनकी सौतेली मां और  तीन मजीद शादियां जिनमें 2 शौहर शायर थे इन्हें ज़हनी अज़ीयत से मुब्तला कर दिया गया सारा लिखती हैं एक शाम शायर साहब ने कहा आप से ज़रूरी बात करनी है फिर एक रोज़ रेस्टोरेंट में मुलाक़ात हुई उसने कहा शादी करोगी दूसरी मुलाक़ात में शादी तय हो गयी अब काज़ी के लिए पैसे नहीं थे मैने कहा आधी फ़ीस तुम क़र्ज़ ले लो और आधी में चूंकि घर वाले शरीक़ नहीं होंगे मेरी तरफ़ से गवाह भी लेते आना एक दोस्त से मैने उधार कपड़े मांगे और मुकर्रर जगह पर पहुंची और निकाह हो गया काज़ी साहब ने फ़ीस के अलावा मिठाई का डब्बा भी मंगवा लिया तो हमारे पास कुल छ: रुपए बचे में लालटेन की रोशनी में घूंघट काढ़े बैठी थी शायर ने कहा दो रुपए होंगे बाहिर मेरे दोस्त ग़ैर किराए के बैठे होंगे मैने दो रुपए दे दिए और फिर कहा हमारे यहां बीवी नौकरी नहीं करती नौकरी से भी हाथ धोए घर में रोज़ तरीन याफ्ता शायर और नक़्क़ाद आए और एलियट की तरह बोलते और कम अज़ कम मेरे ख़मीर में इल्म की वहशत तो थी ही लेकिन इसके बावजूद कभी कभी भूख बर्दाश्त नहीं होती रोज़ घर में फ़लसफे़ पकते और मनतब खाते एक रोज़ झोंपड़ी से भी निकाल दिए गए
                        ये भी पराई थी एक आधा मकान किराए पर ले लिया में चटाई पर लेटी दीवारें गिना करती और अपने जहल का अक्सर शिकार रहती मुझे सातवां महीना हुआ दर्द शदीद था इल्म के गुरूर में वो आंखें झपके बग़ैर चला गया और दर्द शदीद हुआ तो मकान मालिक मेरी चीखें सुनती हुई आयी और मुझे अस्पताल छोड़ आयी मेरे हाथ में पांच कड़कड़ाते नोट थे थोड़ी देर बाद लड़का पैदा हुआ सर्दी शदीद थी एक तौलिया भी बच्चे को नसीब न था डॉक्टर ने मेरे बराबर बच्चे को स्ट्रेचर पर लिटा दिया 5 मिनट के लिए बच्चे ने आंखें खोली और कफ़न कमाने चला गया मेरे जिस्म में आंखें भरी हुई हैं सिस्टर वार्ड में मुझे लिटा गई मैने कहा मैं घर जाना चाहती हूं क्यूंकि मेरे घर में किसी को इल्म नहीं है कि मैं कहां हूं उसने बेबाकी से मुझे देखा और कहा तुम्हारे जिस्म में ज़हर फैलने का डर है तुम बिस्तर पर रहो लेकिन अब आराम तो कहीं भी नहीं था मेरे पास मुर्दा बच्चा और 5 रुपए थे मैंने सिस्टर से कहा मेरे लिए मुश्किल है अब अस्पताल में रहना मेरे पास फ़ीस के पैसे नहीं हैं में लेकर आती हूं भागूंगी नहीं तुम्हारे पास मेरा मुर्दा बच्चा अमानत है और सीढ़ियों से उतर गई मुझे 105 डिग्री बुखार था में बस पर सवार हुई और घर पहुंची मेरे पिस्तानों से दूध बह रहा था मैंने दूध गिलास में भरकर रख दिया
                  इतने में शायर और बाक़ी मुंशी हज़रात तशरीफ़ लाए मैंने उनसे कहा लड़का पैदा हुआ था मर गया है उसने सरसरी सुना और नक़्क़ादों को बताया कमरे में दो मिनट ख़ामोशी रही और तीसरे मिनट गुफ़्तगू शुरूअ हो गयी सादी ने क्या क्या कहा था और वारिस शाह बहुत बड़ा आदमी था ये बातें तो रोज़ ही सुनती थीं पर आज लफ़्ज़ कुछ अलग ही सुनायी दे रहे थे मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ये सारे बड़े लोग थोड़ी देर के लिए मेरे लहू में रुके हों आबू और फ्राइड मेरे रहम से मेरा बच्चा नोच रहे थे उस रोज़ इल्म मेरे घर पहली बार आया था मेरे बच्चे का जन्म देखो चुनाचे की तरह एक गेंडे की तरह गुफ्तगू रही और ख़ामोशी आंख लटकाए मुझे देखती रही मैं सीढ़ियों से एक चीख़ की तरह उतरी मेरे हाथ में तीन रुपए थे मैं एक दोस्त के पास पहुंची और तीन सौ रुपए क़र्ज़ मांगे उसने दे दिए और देखते हुए कहा क्या तुम्हारी तबीयत ख़राब है मैंने कहा मुझे बस ज़रा सा बुखार है मैं ज़्यादा देर रुक नहीं सकती पैसे किसी क़र्ज़ ख़्वां को देने हैं वो मेरा इंतज़ार कर रहा होगा अस्पताल पहुंची बिल ₹295 बना अब मेरे पास सिर्फ़ मुर्दा बच्चा और पांच रुपए थे मैंने डॉक्टर से कहा आप लोग चंदा इखट्टा कर के इसे कफ़न दें और इसकी क़ब्र कहीं भी बना दें मैं जा रही हूं बच्चे की असली क़ब्र तो मेरे दिल में बन चुकी थी मैं फिर दोहरी चीख़ के साथ सीढ़ियों पर उतरी और नंगे पैर सड़क पर दौड़ती बस में सवार हो गयी कंडक्टर ने समझा सदमे की वजह से मैने ज़हनी तवाज़ुन खो दिया है और मुझसे टिकट नहीं मांगा और लोग भी ऐसे ही देख रहे थे में बस से उतरी और कंडक्टर के हाथ में पांच रुपए रखते हुए जा निकली घर पहुंची गिलास में दूध रखा हुआ था कफ़न से ज़्यादा उजला  मैंने अपने दूध की क़सम खायी शेर में लिखूंगी, शायरी में करूंगी, मैं शाइरा कहलाऊंगी  और दूध बासी होने से पहले मैने एक नज़्म लिख ली थी लेकिन तीसरी बात झूठ है मैं शायरा नहीं हूं न ही मुझे कोई शायरा कहे मैं अपने बच्चे को कफ़न नहीं दे पायी आज चारों तरफ़ से शायरा-२ की आवाज़ें आती हैं लेकिन कफ़न के पैसे अभी पूरे नहीं हुए । 
             
 अमृता प्रीतम सारा को याद करते हुए कहती हैं सारा की नज़्मों को छूकर कहीं उसके बदन को छुआ जा सकता है फिर ये भी कहा सारा की कहानी पढ़ते हुए आप ये भी जानेंगे कि इस गलीज़ मुआशरे की सूरत नज़र आयेगी और बहुत मुमकिन है उसके बदन का रोशन चराग़ में आपको बे हयाई नज़र आ जाये मगर यक़ीन कीजिए उसने उन मर्दों के गुनाह रकम किये जिसके मुमलिकत में औरतों को बंधी से ज़्यादा कुछ नहीं समझा आज भी औरत अगर मुंह खोल दे तो मर्दों कि आंखें बाहर आ जाती हैं अब औरतों को मर्दों कि गवाही नहीं चाहिए सारा क़ब्र बन सकती हैं क़ब्र की ख़ामोशी नहीं अगर आप दिलवाले हैं तो सारा की क़ब्र के पास दो लम्हे के लिए बैठ जाइए आप को उस औरत की आवाज़ सुनायी देगी जिसको मर्दों की दुनिया ने कभी क़ुबूल नहीं किया सारा की खुदकुशी में उन ज़िंदा औरतों की लाश नज़र आती है जो बदन के आबकीनों में नुमाइश की तरह रखी हैं और अपने दुख उठा रही है लेकिन क्या होगा अगर ज़ुबानों ने दुख का बोझ उठाने से इन्कार कर दिया 'ज़मीन मेरी थकन से भी छोटी है' औरत की थकन को नाप देने वाले इस मुआशरे को क्या गाली दी जा सकती है जो औरत को अपनी जूती समझ बैठे हैं ये वही औरत है जिसने समाज के मुहावरों को यूं तोड़ दिया कि वफ़ादारी की गलियों में कुतिया कम और कुत्ता ज़ियाद: मशहूर है ये कुतिया भी वही दुःख झेल रही है जो एक औरत को गाली देते हुये मर्दों ने अपनी ज़ुबान को ख़ुदा के लहजे में बदल दिया है औरतों को हर दिन हर शोबे में यही सुनना पड़ता है और उसको मज़हब के नाम पर मर्द अपना काम निकाल लेते हैं सारा के दुख अनंत थे इसलिए उसने औरतों की ज़बान लिख दी पहले बच्चे की मौत के बाद सारा ने पहली नज़्म लिखी
                            अमृता प्रीतम ने कहा कि उस वक़्त सारा यह नहीं जानती होगी कि लोग एक दिन उसकी नज़्म पढ़कर हैरत में आ जायेंगे और ये भी कहा शायरी की तारीख़ में सारा की नज़्में एक कुंवारी मां की हैरतें हैं और इस हैरत को आज भी दुनिया कुबूल नहीं कर पायी है सारा ने अपनी शायरी में पितृसत्तात्मक ढांचे को पलट कर रख दिया है उनकी शायरी में वह रचनात्मकता है जो ज़ंजीरों को तोड़ने का जतन करती है सारा ने अपनी शायरी में एक मर्दवादी समाज में ज्ञान पर पुरुषों की इज़ारेदारी होती है. जब कोई महिला अपने दम-ख़म पर 'ज्ञान' के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगी तो पुरुष समाज पहली फ़ुर्सत में उसे ख़ारिज करने की कोशिश करेगा. ऐसा नहीं है कि किया नहीं  यही मर्दवादी समाज जब सारा के बाग़ी तेवर, तर्क, विचार और चिंतन के आगे बौना साबित हुआ तो उसने उनको पाग़ल और बेराह क़रार दिया. सारा ने तो दुनिया को समझ लिया था किन्तु दुनिया उनको समझने में नाकाम रह गयी उनकी समकालीन शायरा परवीन शाकिर, अज़रा अब्बास, किश्वर  फ़हमीदा रियाज़ जैसी उर्दू की नारीवादी कवयित्रियां हैं. किंतु सारा की आवाज़ सबसे अलग, सबसे जुदा मुखर है सारा ने अपने जीवन में जो दुःख देखा जिसका तख़य्युल मैं तो नहीं कर सकता 29 साल की ज़िन्दगी में सारा ने कई बार खुदकुशी की कोशिश की पर कामयाब न हो सकीं लेकिन 4 जून 1984 को ट्रेन के सामने आकर इस दुनिया को विदा कह दिया मैं जब भी सारा की हयात की दास्तां पढ़ता हूं हर बार मेरे चश्मान नम हो जाते हैं  सारा ने पंजाबी शायरी भी की बाद ए अख्खक ,में नंगी चुंगी, लुक्कन मिट्टी के सभी पंजाबी शायरी के मजमुए हैं उर्दू शायरी में आंखें और नींद का रंग शामिल है संयोग देखिए आज सारा का जन्मदिन है और अमृता प्रीतम की पुण्यतिथि दोनों को दिल की गहराइयों से ख़िराज़-ए-अक़ीदत !  🙏❣️

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