पाकिस्तान बनाने के पीछे मुस्लिमों की अलगाववादी सोच को दोष देते मैंने बहुत से लोगों को देखा है, इन बातों को सुनकर तो मुस्लिमों के प्रति ही अविश्वास और उनके राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता पर संदेह स्वाभाविक ही उभरता है ....पर इतिहास का थोड़ी सी गहनता से अध्ययन कीजिए .... आपको 1857 की क्रांति मे हिन्दू जनता के हित के लिए अनेकों मुस्लिम शासकों, मुस्लिम सेनानियों और मुस्लिम धार्मिक विद्वानों के अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष का भी वर्णन मिलेगा फिर उस क्रांति की असफलता के बाद दण्ड स्वरूप अंग्रेज़ों द्वारा हजारों की संख्या मे मुस्लिम नागरिकों और मुस्लिम विद्वानों के नरसंहार का भी जिक्र भी मिलेगा, और इसके बाद "हिन्दू पुनरूत्थानवाद" का भी ज़िक्र मिलेगा जिसमें भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाने के लिए मुस्लिम विरोधी व्यक्तव्यों, और कृत्यों की बाढ़ सी लग गई थी, मुस्लिमों को बुरा भला कहने का फैशन बना लिया गया था, उसी समय “हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान” के नारे और गौ रक्षिणी समितियों का गठन किया गया था जो ब्रितानी उपनिवेश भारत मे मुस्लिमों के विरुद्ध हिंसा फैलाने का मुख्य कारण बन गए थे
उसी समय आर्य समाज का गठन हुआ जिसके अनुसार पवित्र कुरान की शिक्षाएं कुएं मे डालने योग्य थीं ...
इतिहासकार सुमित सरकार ने लिखा है "पुनरूत्थानवाद स्पष्ट रूप से एक आक्रामक हिन्दू अस्मिता को स्थापित करने मे सहायक हुआ "
और इतिहासकार प्रोफेसर बिपिन चन्द्र ने लिखा है कि "20 वीं शताब्दी के आरंभ मे हमारे यहाँ जो राष्ट्रवादी विचार था ,उसके बड़े हिस्से मे हिंदूवादी पुट था, इसने भी साम्प्रदायिकता के विकास मे योगदान दिया ".....
उस समय इस आक्रामक हिन्दुत्व के प्रभाव मे काँग्रेस के कुछ बड़े नेता भी थे ....
फिर आपको इतिहास मे जिक्र मिलेगा अपने ऊपर लगातार होती हिंसा से डरे हुए उन मुस्लिमों का साथ देने का दिखावा कर के अंग्रेज़ सरकार द्वारा बंगाल विभाजन और मुस्लिम लीग के गठन का... क्योंकि अंग्रेज़ों को बदली हुई परिस्थितियों मे शक्तिशाली हो चुके हिन्दुओं से कड़ी चुनौती मिल रही थी, ऐसे मे अंग्रेज़ मुस्लिमों को अपनी तरफ मिलाकर भारत पर निर्बाध राज करना चाहते थे
फिर आप ये भी पढ़ेंगे की मुस्लिमों पर लगातार होते हमलों के बावजूद मुसलमानों द्वारा खुद को हिन्दुओं से अलग कर लेने के पक्ष मे देश के अनेकों बुद्धिजीवी मुसलमान नहीं थे, मौलाना शिबली नोमानी ने मुस्लिम लीग के गठन और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने पाकिस्तान की मांग का कड़ा विरोध किया था ....
... बल्कि अशरफ अली थानवी जैसे इक्का दुक्का उलमा को छोड़कर तमाम देवबन्दी विद्वानों ने बंटवारे का सदा विरोध ही किया था.
देख लीजिए , जिस इस्लाम पर आप मुस्लिमों के देशविरोध का आरोप लगाते हैं उसी इस्लाम का गहरा ज्ञान रखने वाले विद्वानों ने पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था
और पाकिस्तान की मांग करने वाले डरे हुए आम मुसलमान थे,
... मुस्लिम विद्वान हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे, इसी कारण एक अंग्रेज़ अधिकारी लोवैट फ्रेजर ने डनलप स्मिथ का ध्यान इस तरफ दिलाया था, उसने एक खत मे लिखा था "भारत मे हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा ये है कि अपेक्षाकृत कम उम्र किन्तु अधिक योग्यता वाले अनेकों मुसलमानों की मनचाही हिन्दू मुस्लिम एकता कहीं स्थापित न हो जाए"
..... इसके बावजूद हिन्दू महासभा, आरएसएस आदि के बढ़ते वर्चस्व से आतंकित हो चुके कई मुस्लिम अंग्रेज़ों के द्वारा दिए गए प्रलोभन, पृथक पाकिस्तान को अपनी और अपनी आनेवाली नस्लों की सुरक्षा के लिए अगर आवश्यक मानने लगे थे तो इसमें ज्यादा दोष किसका था....
... मुस्लिमों का ? अंग्रेज़ सरकार का ?? या फिर चरमपंथी हिंदू संगठनों का ???? सोचकर बताइए
- Tariq Azeem Tanha
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