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Showing posts from August, 2024

The Transformation of Rajputs into Muslims: A Historical Perspective

राजपूत मुस्लिम कैसे बने ??? . ..... राजपूत क़ौम युद्ध में अपनी बहादुरी के लिये जानी जाने वाली क़ौम है, इसलिये मैं अक्सर सोचता था कि हमारे राजपूत पूर्वजों के जबरन मुसलमान बनाये जाने की जो अफवाहें सुनी जाती हैं वो सच कैसे हो सकती हैं, जबकि राजपूत युद्ध में हारने के बाद अपमान भरा जीवन जीने की बजाय ख़ुद अपना गला काटकर आत्मबलिदान देना पसन्द करते थे, इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलते हैं.. . फिर ये कैसे हो सकता है कि इन राजपूतों को कोई तलवार के बल पर जबरन मुसलमान बना दे, और ये बिना आस्था के इस्लाम अपनाने को अपनी नियति मान लें ?? .... पर इस बारे में कुछ साल पहले कुछ दिलचस्प जानकारी मिली, .... इतिहासकार भूप सिंह जी ने मुस्लिम राजपूतों के बारे में जो बताया वो बात सबसे ज़्यादा प्रमाणिक लग रही है कि पुराने समय में तुर्कों या मुगलों वगैरह से युद्ध होता था, तो योद्धा होने के नाते राजपूतों के अलावा कोई युद्ध में नही जाता था,  .... यही राजपूत अगर प्रतिपक्ष द्वारा हराकर बन्दी बना लिए जाते थे, जब तक कि कोई सन्धि न हो, फिर जब साल छह महीने बाद ये राजपूत रिहा होकर अपने घर पहुँचते तो इनसे ये कहा ज

Ghazal | Rules & Regulations | Young Poets

कुछ लोगों के ग़ज़ल सोचने का और लिखने का तरीक़ा धुन से जुडा होता है। मतलब कुछ ग़ज़लियात जो धुनों पर पर गाई जा चुकी हैं उन्हें गुनगुनाते हुए उसी लय पर और उसी बह्र में उनकी ग़ज़ल बन जाती है। यह तस्लीम-शुदा तरीक़ा है। इससे ग़ज़ल में रवानी भी आती है। इसमें एक ही छोटी सी दिक़्क़त यह होती है कि इनमें से बहुत से शोअरा उस बह्र में लिख नहीं पाते जिसे वह किसी धुन पर गुनगुना नहीं पाते। यह भी कोई इतना बड़ा मसअला नहीं है। ज़ियादातर शोअरा की ग़ज़लियात कुछ गिनी-चुनी बहूर में ही होती हैं, ऐसी बहूर जिनकी लय उनकी रूह में बस जाती है। मगर इन शोअरा में कुछ ऐसे हैं जो धुन पर लिखने के बा'द फिर वह ग़ज़ल बह्र में है या नहीं यह देखने की भी सलाहियत नहीं रखते, और अना इतनी है कि कोई बता दे कि भाई बह्र की ग़लती हुई है तब भी क़ुबूल नहीं करेंगे, कहेंगे "बकवास... पढ़ते वक़्त बिल्कुल कोई भी सकता नहीं लगा तो बे-बह्र कैसे हो गयी?" भई ख़ुश रहें, जैसा भी चाहे लिखें। कोई मसअला नहीं। अब आप पूछेंगे कि फिर मसअला क्या है? मसअला है वह शोअरा जो समझते हैं कि जिस ग़ज़ल को वह ख़ुद किसी धुन में बिठा नहीं सकते वह ग़ज़ल दर

Manish Kumar 'The Kahaniyaan Wala' & His Wife In a Function of Poetry | Kahaniyan Wala | Manish Kumar

बीती शाम बड़ी शायराना थी। ‘जश्न-ए-अदब’ की महफ़िल में शिरकत की गई। यूँ तो मोहतरमा के साथ कई जगह कविताएँ पढ़ी गई हैं ग़ज़लें सुनी गई हैं मगर एक पूरी शाम मुशायरा देखने का मौक़ा पहली बार था।  मुशायरे से पहले क़व्वाली सुनी गई। कोई नामुराद ही होगा जिसने अब तलक ‘काली काली ज़ुल्फ़ों के फंदे न डालो’ नहीं सुना होगा। पहले जब सुनते थे तो गुनगुनाते थे  “न छेड़ो हमें हम सताए हुए है बहुत जख्म सीने पे खाए हुए है सितमगर हो तुम खूब पहचानते है तुम्हारी अदाओ को हम जानते है दगा बाज़ हो तुम सितम ढाने वाले फरेबे मोहब्बत में उलझाने वाले ये रंगी कहानी तुम्ही को मुबारक तुम्हारी जवानी तुम्ही को मुबारक हमारी तरफ से निगाहें हटा लो हमें जिंदा रहने दो ऐ हुस्न वालो” और कल होंठों ने गुनगुनाया  “बन सँवर कर वो जब निकलते हैं  दिलकशी साथ साथ चलती है हार जाते है जितने वाले वो नज़र ऐसी चाल चलती है जब हटाते है रुख से जुल्फों को चाँद हस्ता है रात ढलती है क्या क़यामत है उनकी अंगड़ाई खीच के गोया कमान चलती है काली काली जुल्फों के फंदे ना डालो हमें जिंदा रहने दो ऐ हुस्न वालों” गीत गाते रहे और कभी कनखियों से तो कभी आँखों मे

सपनों की बाजारें, गुटबाजी और कविमंचों की दुकानदारी

कविलोक भी क्या अद्भुत है और क्या ही विशिष्ट एवं विरले व्यक्तित्व आप से दोचार होते हैं। आप कवि हैं, यानि आप सपने देखते ही होंगे बड़े बड़े मंचों से काव्यरस की फुहारें बरसाने के लिये। आपके अंदर का कवि अवश्य ही उमड़ पड़ता होगा लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच खड़े होकर आभार प्रकट करने का। फूल माला, कैमरा, फैन फॉलोविंग और ऑटोग्राफ लेते हुए हुजूम के मध्य स्वयं के स्टारडम को महसूस करने उसे जीने और उसका आनंद उठाने का स्वप्न देखते ही होंगे। बड़ी बड़ी रकमों से भरे लिफाफे और उनके रास्ते आता वैभव और विलास भी आपके सपनों का हिस्सा अवश्य ही होगा। ऐसी आम धारणा तमाम मंचासीन वरिष्ठ सहज़ ही बना लेते हैं और इसके साथ आरम्भ होता है सपनों के बाजार सजाने का जहाँ आपके प्रातिभ, काव्य कौशल को एक बड़ा स्वप्निल मूल्य दिखाया जाता है जिसकी आमद भविष्य के गर्भ में होती है बस उसके लिये आपको झोंकना पड़ सकता है अपना सर्वश्व, जिसमें हो सकता है आपका स्वाभिमान, आपके सिद्धांत, आपकी मौलिकता और न मालूम क्या क्या? सपनों की बाजारें क्रय-विक्रय का मौखिक अनुबंध कर भविष्य के हाथ सौंप देते हैं लेन देन जो कालांतर में स्वप्न विक्रेता या क्रेत