कुछ दिनों पहले मैंने एक-एक शे'र पर मश्क़ करने की, जुनूँ करने की बात लिखी थी। कुछ मैसेजेस आए कि और अच्छी तरह समझाइए। ठीक है कोशिश करता हूँ। जो उस्ताद हैं वह इससे आगे न पढ़ें 😀
पहली बात यह कि रदीफ़ और क़ाफ़िया के बारे में मत सोचिए। ख़याल सोचिए। एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं।
समझिए कुछ देर सोचने पर आपको यह ख़याल आता है कि "तेरी तस्वीर इसलिए ख़ूबसूरत है क्यूँ कि वह मेरे दिल में रखी है"। ख़याल आपको अच्छा लगा। यह ख़याल छोटी बह्र में बेहतर बैठेगा। आपने सोचा इसे फ़ाइलातुन, मुफ़ाइलुन, फ़ेलुन में बिठाने की कोशिश करते हैं।
जो लेखन के शुरुआती दौर में हैं वह शायद (अनुभव से कह रहा हूँ 😀) ऐसा लिख दें...
मैंने रक्खी हुई है दिल में सो,
तेरी तस्वीर ख़ूबसूरत है।
ख़ुश हो गये.... पोस्ट कर दिया....है ना? बस यही नहीं करना है। यहाँ से आगे इस पर सोचना शुरू करना है। रदीफ़ और क़ाफ़िया का बंधन तो है नहीं। खुले दिल से सोचिए कि इस शे'र को और बेहतर कैसे करें।
और सोचेंगे तो दिमाग़ कहेगा, दिल में तस्वीर रखना मतलब किसी से प्यार होना। और प्यार होता है किया नहीं जाता। तो फिर तस्वीर ख़ुद रखने की बात सही नहीं लगती। आप लिखेंगे....
मेरे दिल में रखी हुई है सो,
तेरी तस्वीर ख़ूबसूरत है।
इससे बेहतर सोचेंगे तो ख़याल आएगा। तस्वीर दीवार पर लगाई जाती है। इस का इस्तेमाल करें तो रब्त बढ़ेगा। फिर आप लिखेंगे....
दिल की दीवार पर लगाई है सो,
तेरी तस्वीर ख़ूबसूरत है।
अब यहाँ एक बात कहना चाहूँगा। शे'र में संतुलन या balance का होना बहुत ज़रूरी होता है। शे'र मतलब एक ख़याल को दो मिसरों में कहने का हुनर। A couplet is a lyrical quote. तो इसे कैसे जाँचे? मुझे यह तरीक़ा पसंद है....शे'र को उल्टा कर दीजिए। ऊला मिसरे की जगह सानी मिसरा और सानी मिसरे की जगह ऊला मिसरा। अगर शे'र वाक्यरचना के हिसाब से फिर भी उतना ही अच्छा लगे तो फिर वह संतुलित है। अब अपने शे'र के साथ यह करते हैं।
तेरी तस्वीर ख़ूबसूरत है,
दिल की दीवार पर लगाई है सो।
कैसा लगा? अटपटा? क्यूँ? जो पहले ऊला मिसरा था और अब सानी मिसरा है वह कुछ अधूरा सा लग रहा है ना? बस इसलिए कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे हैं जिनके साथ ऊला को मुकम्मल करना टालना चाहिए। इससे वाक्यरचना की सुंदरता बिगड़ती है। तो चलिए इसे दुरुस्त करते हैं।
दिल की दीवार पर लगाने से,
तेरी तस्वीर ख़ूबसूरत है।
अब बेहतर लग रहा है। आप ख़ुश हो गये मगर आपने और सोचा..."ख़ूबसूरत है" सही है या "ख़ूबसूरत हुई" ?
आपने फिर इसे बदला...
दिल की दीवार पर लगाने से,
ख़ूबसूरत हुई तेरी तस्वीर।
अब आप को थकावट होने लगी। मगर जुनूँ पूछ रहा है कि क्या इसे और बेहतर कर सकते हैं? फिर आपने सोचा तस्वीर "लगाना" से तस्वीर "सजाना" बेहतर होगा।
दिल की दीवार पर सजाने से,
ख़ूबसूरत हुई तेरी तस्वीर।
देखिए सोचते सोचते हम कहाँ तक आ गये। यह बस एक उदाहरण था दिशा समझने के लिए। मैं नहीं कहता कि जो बना है वह शे'र बहुत ख़ूबसूरत है। मगर आप इस ख़याल पर और मेहनत कर सकते हैं। No Limits ! देखते हैं कहाँ तक जाता है यह ख़याल।
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