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पितृसत्तामक समाज पर लानत

के इस दौर में एक संकट बड़ा गहराया है, सभी साथी पढ़े और ऐसे लोगो की मदद करे क्योकि ये वाक़या आज मेरे साथ पेश आया है और ये एक सच्ची दास्तान है।

एक परिवार में पति पत्नी और उनकी एक बेटी थी तो हुआ ये की 2009 में उस हँसते खेलते परिवार में उस पत्नी के पति की मृत्यु हो जाती है और फिर उस माँ और बेटी पर जो कहर साली का पहाड़ टूटा जो गुरबत की बेड़िया गिरी उसकी कैफ़ियत मैं शायद बयान भी न कर पाऊं, उस औरत के पति ने जो कुछ कमाया था वो कुछ महीने कुछ हफ़्ते तक तो उनकी जरूरतें पूरी करता रहा मगर उनके ज़िन्दगी भर के ख़र्चे के लिये काफी नहीं था। बेटी की मां ने अपनी बच्ची की परवरिश के लिए अपने भाई और पिताजी के घर की तरफ़ रुख किया, बेटी की माँ अपने भाईयों और बाप के ताने सुनती थी उसके भाई कहते थे कि अपने पति के घर जा मगर वह असहाय थी बच्ची छोटी थी उसकी परवरिश को लेकर बेचारी माँ ने ये सोचकर अपने ननिहाल का रुख किया था कि शायद मेरे भाई मेरी मदद करेंगे क्योंकि वो सब सरकारी नौकरी पर है मगर मैं थूकता इस पितृसत्ता वादी समाज पर जिसने उस औरत पर लगातार 10 साल ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े उस बेचारी औरत और बेटी को अपने घर मे एक नौकर से गिरा हुआ समझा, क्या समाज इतना नीच हो गया है जो अपने ही खून की इज़्ज़त और दो वक्त की रोटी ऐसे हालात में नहीं दे सकता जिसमे ऐसी विपरीत स्तिथि हो, यक़ीन मानिये आप वह माताजी और वह बेटी जिंदगी भर ताने सहकर बड़ी हुई है, यहाँ तक मुझे अच्छे से याद है जब हम कॉलेज में पढ़ते थे तो वो लड़की बहुत उदास रहा करती थी और इस चीज़ की वजह से न तो वह किसी पार्टी में जाती थी और न ही फ्रेंड्स के साथ ज़्यादा बातचीत करती थी, वह पढ़ने में हद से ज्यादा होशियार थी। मैंनें पूरी इंजीनियरिंग में ये बात सबसे ज़्यादा ग़ौर की थी, लेकिन मेरी कभी पूछने की हिम्मत नहीं हुई की उदासी की पीछे वजह क्या है, 2019 में पासआउट होकर वह लड़की अपनी माँ की परवरिश के लिए नोएडा में जॉब के लिये चली जाती है और अपनी माँ को पैसे भेझती है मगर आज (25 अप्रैल को)उन माताजी के भाई और पिताजी ने उन्हें घर से निकाल दिया उस लड़की ने फेसबुक पर स्टेटस डाला तो मैंनें और मेरे एक सीनियर थे उन्होंने माता जी के रहने का इंतिज़ाम किया शुरू में मुझे लगा कि ज़्यादा मसला नहीं है लेकिन आज मग़रिब की नमाज़ के बाद उनका मेरे पास फ़ोन आया तो उन्होंने अपनी समस्याओं से मुझे अवगत कराया और यक़ीन मानिये जिस तरह से वो रो रही थी और सिसक रही थी मैं बयान नहीं कर सकता हूँ, खुदा इस तरह से भी किसी को रुसवा न करे। उन्होंने मुझे बताया कि उनके मामा ने उस बेचारी लड़की को पढ़ाई के पैसे तक नहीं दिये थे उस लड़की ने पूरी इंजीनियरिंग लोन लेकर मुकम्मल की है, और जब उन्होंने ये बताया कि उनकी सैलेरी इतनी नहीं है कि वह अपनी माता जी घुटनों का इलाज भी करा सके और अपना और अपनी माता जी के घर का ख़र्च भी उठा सके, उस लड़की ने इंजीनियरिंग की है और वह पढ़ने में काफ़ी होशियार है तो वह मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई का भी ज़ज़्बा रखती है तो ये सुनकर मेरी आँख से आँसू छलक पड़े, चूँकि मैं एक शायर भी हूँ तो मेरा दिल बहुत ज़्यादा पसीज़ता है लोगो की पीड़ाएँ देखकर मुझसे रहा नहीं जाता आज मैं आप सबसे एक वादा करता हूँ अगर ज़िन्दगी में मैं किसी मक़ाम पर फ़ायज़ हो गया तो इन माता जी का इलाज मैं कराऊंगा अपने खर्च पर और उस लड़की की शादी भी कराऊँगा। ये बातें मैंनें एक मकसद से कही है और वो मकसद ये है कि ये जो कोरोना नाम हमारे बीच आम हुई है यह ऐसे ही नहीं हुई इसके पीछे इन्हीं के जैसी माँ-बेटी की दुहाई है जब तक हम अपने लोगो को अपना नहीं समझेंगे, एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो ऐसी परिस्थितियाँ दुबारा फिर बनेगी और फिर ऐसा होगा कि वह परिवार जो पैसों के लिए अपने खून तक को भूला देते है उनका नामों-निशाँ नहीं बचेगा, कोरोना के आने का मतलब यही है कि हमारे मसले, मसाइल बहुत बिगड़ चुके है हम बेटियों को बेटी नहीं समझते माँ को मां नहीं समझते बेटा बाप की इज़्ज़त नहीं करता तो फिर होगा यही होगा जो आज हो रहा है शायद इससे भी भयंकर, और मैं लानत भेझता हूँ ऐसी पितृसत्ता वादी समाज पर जिसमें सारे हक़ सिर्फ़ पुरुषों को दिये है और औरतों के अधिकारों को रौंदा गया है। थू ऐसे समाज और उनके मानने वालों पर।
पितृसत्तामक समाज खा जायेगा एक दिन सभी नारियों के गौरव और सम्मान को। थू ऐसे समाज पर जहाँ भाई-भाई को नहीं समझता, भाई बहन को नहीं समझता, समझता है तो सिर्फ़ एक गाली और यही गाली निकलेगी एक दिन जिस्मों को चीरती हुई कोरोना नाम की बीमारी से। अफ़सोस


तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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