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दीवाली और करवाचौथ मुसलमानों का त्योहार होते तो?

*अगर....?*
__________
अगर करवाचौथ मुसलमानों का त्योहार होता तो एक महीने पहले से ही मीडिया पर डिबेट शुरु हो जाती, आखिर औरत ही क्यों ?*
, *मर्द क्यों नहीं रखता औरत की लम्बी आयु के लिये उपवास*
*आखिर औरत पर यह अत्याचार कब तक*

ठीक इसी तरह अगर दिवाली मुसलमानों का त्यौहार होता तो यहाँ भी मीडिया पर हर रोज डिबेट चलती...  *यह त्योहार नहीं इसकी आड़ में है बम फेंकने की प्रैक्टिस*

संबित पात्रा ऐसा रोता... ऐसा रोता... ऐसा रोता कि दिये मे तेल कि जरूरत ही न पड़ती... सारे दिए उसके आँसू से भर जाते.... 

अमीश देवगन और अमन चोपड़ा जैसे एंकर कंधे पर ऑक्सीजन सिलेंडर लादकर स्टूडियो पहुंचते और ऑक्सीजन मास्क लगाकर शो करते,बताते कि कैसे रास्ते में धुएं से दम घुटने से वो मरने वाले ही थे कि ऑक्सीजन सिलेंडर ने उनकी जान बचा ली....

गौरव भाटिया डिबेट के लिए आईसीयू में जाकर लेटता और वहीं से डिबेट में भाग लेता....

तरह तरह की मीडिया हेडलाइन चला रही होती- 
*"दहशतगर्दी का त्यौहार..हिंदू बेबस और लाचार"..* 

*"देश की फिजाओं मे बम ही बम.. कैसे न घुटे आम आदमी का दम"..* 

बेचारे दिए,मूर्तियाँ और पटाखे बेचने वाले गिरा गिराकर मारे जाते जगह जगह... बजरंग दल एक एक दुकान बंद करा रहा होता... अमित शाह दिवाली रोको अध्यादेश अब तक ला तैयार कर लिए होते....

और दिवाली मनाने के जुर्म मे अगले दिन न जाने कितनों पर यूएपीए लग जाता... 

*(कड़वा है पर दिल पर हाथ रखकर कहो कि सच है या नही, आज नमाज़, अज़ान, हिजाब को लेकर यह सब हो रहा है या नहीं ?)*

खामोश रहना भी गलत बात का समर्थन करना ही होता है, मीडिया आपको वही दिखाता है जो आप देखना चाहते हैं, इसलिये जितना गलत मीडिया है उतने ही गलत आप है, अगर गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं तो इन चैनलों का बहिस्कार तो कर ही सकतें, और अगर आपने यह नहीं किया तो माने या न माने लेकिन आप निस्पक्ष और न्यायप्रिय नहीं हैं।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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