मेरे हिस्से के फ़हमी साहिब
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दोस्तो:
रात के दस बजा चाहते हैं, फ़हमी साहिब की अचानक वफात का दुःख पहले से ज़ियादः शिद्दत इख्तियार कर रहा है....
कम-ओ-बेश इसी वक़्त बात हो जाती थी हम दोनों में अक्सर रात को..फिलहाल इज़्तराब की कैफयत है, जब तक कुछ लिख न लूं , राहत न मिले गी..
फुर्सत से फिर किसी रोज़, आज बस इतना ही जो कुछ ज़ेहन में आ पा रहा है..
मुझे नहीं पता के फ़हमी साहिब आप में से किस किस के दोस्त थे? किस के कितने करीब थे? अलबत्ता मेरे बहुत करीब थे, बहुत जियादा करीब..
बड़ी clarity थी कुछ बातों को ले कर हमारे बीच..अक्सर इख्तालाफ भी होता था. लेकिन अपनी इल्मियत की धोंस ज़माने वाला इख्तिलाफ नहीं, जैसे तेसे लड़ते भिड़ते किसी एक नुक्ते पे पहुँचने वाला इख्तालाफ..शायद इसी अपनेपन और दावेदारी के तहत मैं खुल कर उन के अशआर पे अपनी ईमानदार राय देता था..
मैं अपने शेरों पे, उन का दिया हुआ मशवरा एक मिनट में मान लेता था, और वो मेरा मशवरा दस सेकंड में..मेरे कितने अशआर और मिसरों की सेहत फ़हमी साहिब ने दुर्रुस्त की..उन के कितने अशआर आप तक पहुँचने से पहले मेरी नज़र से गुज़ारे गए .. हम दोनों एक दुसरे के पहले-कारी और पहले लिस्नर थे..
हमारे दरमियान ज़ेहनी मुताबिक़त की वेव-लेंग्थ कुछ ऐसी थी के बहुत जल्द एक दोजे की बात पल्ले पड़ जाती थी..
जब भी बात करते थे, हमारा टॉपिक 99% सिर्फ शायरी होता था, या फिर तनक़ीद..या मैथमेटिक्स और आज कल आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस पे बात होती रहती थी.. सियासत और मज़हब से दोनों दुखी थे..Osho के दोनों मुरीद थे..
शेर, शेर की बुनत्त, मिसरे की उठान, मुहावरा, अलफ़ाज़ की नशिस्त-बर्खास्त, मिसरे की कंस्ट्रक्शन, शेर का विसुअल इम्पैक्ट, किक, पंच, शेर की ज़ुबान क्या हो? क्या है? कैसी होनी चाहिए? आज के ज़माने के शेर में जुबान/मुहावरे की लिबर्टी कहाँ तक जायज़ है? उरूज़ और क़वायेद की दबंगई का क्या तोड़ होना चाहिए? फेसबुक के रीडर को कैसे एड्रेस करें? हिंदी/रोमन में उर्दू पढने लिखने वालों को कैसे अटेंड करें? शायरी करते वक़्त संजीदा कैसे बने रहें? मुशायरे के साइड इफेक्ट्स, ओपन माइक का फ्यूचर/ज़रूरत, शम्स उर रहमान फारूकी, ज़फर इकबाल, अहमद मुश्ताक, ग़ालिब, मीर, दुष्यंत कुमार, रेखता, मेले ठेले का मुशायरा, मुशायरे की शायरी और शायर/संजीदा शायर, नए लड़के लडकियां, उन का कलाम/ उन के हाँ तखलीक के इमकानात, ग़ज़ल का मुस्तकबिल, सिंगल शेर का इम्पैक्ट, सिंगल शेर का स्कोप और फ्यूचर.................बस इन्ही टॉपिक्स के इर्द गिर्द घुमते रहते थे हम घंटों, हफ़्तों, महीनों..
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फ़हमी साहिब बज़िद थे के हम दोनों हफ्ते/महीने में किसी एक शाम, फेसबुक लाइव पे महफ़िल सजा कर ग़ालिब, मीर, जॉन, कबीर, मीरा, ग़ज़ल, शेर के क्राफ्ट को बहाना बना कर दोस्तों से बात किया करें और नए लिखने वाले हमारे से खुल के सवाल जवाब करें.....बहुत मज़ा आएगा........नहीं हो पाया, नहीं बेठ पाए कभी..
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पहले-पहल हमारे अज़ीज़ उत्तराखंड के उम्दा शायर शरीक सिद्दीकी ने शायद 2014/15 के अरीब करीब फ़हमी साहिब से मुतारफ किया था ये कह के की एक बूढ़े चचा हैं, आप इन को ज़रूर पढ़ें, बहुत अलग लेवल की शायरी कर रहे हैं......और फिर थोड़े दिनों बाद नदीम काविश ने ग़ालिब अकादमी में हमारी मुलाक़ात की सूरत पैदा की.......... और फिर उस के बाद, आज तक पढ़ ही रहा था उन को दिन रात..
फेसबुक के इलावा इधर मुतवातिर बात होती थी हमारे दरमियान..
70/75 साल का एक अल्ल्हड़ बांका नोजवान, ज़िन्दगी के एक एक पल का आनंद लेते हुए..
उन की पहली किताब "पांचवीं समत" का प्रीफेस लिखा था मैं ने, बहुत लम्बा .. तमाम उम्र ऋणी रहे..
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अभी शाम को चैट देख रहा था उनकी, कुछ दिन पहले के आखरी Whatsapp मेसेज में अश्विनी मित्तल ऐश नाम के एक नोजवान शायर के तीन विडियो लिंक भेजे हैं के इस लड़के को सुनो..
यूँही दर्जनों नए लड़कों से मिलवाया मुझे फ़हमी साहिब से..
अक्सर कहते थे के हाथ हल्का रखो..सीख जाएँगे सब..लेकिन में मर्दम-आज़ार शख्स हूँ, क्या करों?
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बस ऐसे ही चलता था हमारे बीच, मैं भी लिंक भेजता था उन्हें, वो भी...नए लड़कों पे खोब बात होती थी..... कहते थे देखो कितना इमकान हैं इस बच्चे में..लम्बा जाएगा..अच्छा शेर/ अच्छा शायर हम दोनों की कमज़ोरी थी..
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आज उन की वफात की खबर सुनते वक़्त एक गहरा शॉक लगा, और फिर शाम आते आते, धीरे धीरे सब शांत होता चला गया..उन के खोने का दुःख अपनी जगह..
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एक बात अच्छी लगी आज,
मैं ने बे-शुमार पोस्ट्स देखीं कॉमन फ्रेंड्स की, फ़हमी साहिब को श्रद्धांजलि देती हुई पोस्टस.....होसला मिला, के चुपके से अच्छा और सच्चा काम करते रहो, लोग आप से कहें न कहें, आप के चाहने वाले लगातार आप को दिल में बसा रहे होते हैं .........निश्चिंत और मुत्मइन रहना चाहिए हर अच्छे लिखारी को..
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किसी बड़े शायर/लेखक का नुकसान क्या होता है????????आज पता चला होगा सब नए लिखने वालों को.... अच्छे शायर सेंकडों होते हैं, हमारे इर्द गिर्द हमेशा हर वक़्त .. अच्छी शायरी करना वेसे भी बहुत मुश्किल काम नहीं है..
अलबत्ता साबित हुआ की..
फ़हमी साहिब जैसे लोग उस से परे की कोई चीज़ होते हैं....
फ़हमी साहिब की मोत किसी एक इंसान/एक शायर की मोत नहीं है..
ये शायरी के एक यूनिक लहजे, स्टाइल, असलूब, क्राफ्ट, सवेग, गुरूर और पोएटिक attitude की मोत है..और ऐसा शख्स बार बार अदब के इस्टेज पे नमूदार नहीं होता..
शायरी निरंतर होती रहती है, होती रहे गी..
लेकिन अपनी तरह के अकेले, नवेले, अनोखे, फ्रेश और ताज़ाकार लहजे वाला ग़ालिब ,मीर, शिव बटालवी, मंटो, फ़िराक, फैज़, फ़हमी, गुलज़ार सदियों में कोई एक पैदा होता है..
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अलविदा फ़हमी साहिब .....LOVE YOU HAMESHA
आप अमर हो चुके हैं.. ये Immortality, ये अमरत्व, ये लाफानियत मुबारक हो..आप की नस्लें आप की अवलाद, आप के तारुफ़ का आइडेंटिटी कार्ड ले कर फख्र के साथ जियें गे..
रहा हमारा दुःख????? वो आप की बे पनाह मकबूलियत/शोहरत देखते देखते खुद मिट जाए गा..
आप ने फेसबुक पे अपनी दस साल की मोजूदगी से वो कर दिया जो लोग दर्जनों किताबों से नहीं कर पाते..
हर शाम, सिंगल शेर का नशा पिलाने वाले साकी..को हमारा सलाम ए आखिर..
सिर्फ दो मिसरों से क़यामत बरपा करने वाली ये विधा, आप ही ने शुरू की, ये विधा आप ही ही पे ख़त्म होती है..
अलविदा
आप ही के इस शेर के साथ ..
बग़ैर याद किये याद आता रहता है
अब उसके बारे में कुछ सोचना नहीं पड़ता
अलविदा
आप का सोगवार,
तारिक़ अज़ीम 'तनहा', रुड़की/ 20.10.2024
#FehmiBadauni
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