पाकिस्तान में एक हिंसक दंगा भड़क उठा, जिससे सिंधी समुदाय को एकजुट होकर भारत भागना पड़ा।
जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी हमले करते समय राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था और लाखों कश्मीरी पंडित दिल्ली में सरकारी निगरानी में विस्थापित हुए हैं। आज ये दोनों समुदाय भाजपा के पारंपरिक मतदाता हैं।
एक बार राही मासूम रज़ा और लालकृष्ण आडवाणी दूरदर्शन पर बात कर रहे थे। रज़ा ने आडवाणी से पूछा कि आजादी के बाद से भारत में कितने दंगे हुए हैं?
लगभग चालीस हजार... आडवाणी ने उत्तर दिया।
इस पर राही ने कहा कि भले ही आप बीस हजार दंगे मान लें, आप अपना देश छोड़कर एक ही दंगे में भारत आ गए हैं, लेकिन आप उन्हें देशभक्ति कैसे सिखा सकते हैं जिन्होंने इस देश में अपनी जमीन, अपनी भाषा, अपना देश नहीं छोड़ा। हजारों दंगों के बावजूद भारत का?
आडवाणी बिलकुल अवाक थे। प्रवासी भारतीयों में दलितों और मुसलमानों का प्रतिशत आज भी नगण्य है। भारतीय मुस्लिम ब्रदरहुड की देशभक्ति पर संदेह करने वाली यूनियनें मूल रूप से देशद्रोही हैं।
एक ध्यान देने वाली बात यह है कि आज भी भारत में सरकार, प्रशासन, मीडिया, अफवाहों और संघ समर्थक भाजपा समर्थकों द्वारा किए जा रहे 10% दंगे जानबूझकर दलितों, कभी ईसाई और अधिकांश मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा जैसे देशों में, वे सबसे पहले शरण लेंगे, क्योंकि उनकी नसों में द्विभाजन अलग है।
बहुसंख्यकों को यह क्यों नहीं देखना चाहिए कि हमने खुद एक राजशाही को मारने वाले एक सुनियोजित दंगा और हजारों लोगों की हत्या करने वाले व्यक्ति को आज दूसरी बार हिंदू समर्थक दंगाई बना दिया है जिसने देश के प्रधान मंत्री और अजय बिष्ट को पुरस्कृत किया है। दूसरी बार मृत महिला से रेप साध्वी प्रज्ञा की तरह हिंदुओं को भी बहुमत से महिलाओं को संसद में भेजना चाहिए या नहीं?
इसलिए मैं यह कहूंगा कि सामान्य भारतीय हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और ईसाई मुझसे ज्यादा सहिष्णु हैं।
यह कहना अधिक उचित प्रतीत होता है कि हमारा भारतीय संविधान समतावादी और सहिष्णु है।
- तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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