मैंने इतने दिन रेजिस्ट किया कि कश्मीर फाइल्स पर कुछ नही लिखूं । उसकी दो वजहें थीं। पहली तो यह कि यह फ़िल्म मैंने देखी नहीं अभी और दूसरे यह कि कुछ लोग हैं मेरी प्रोफाइल में। उन्हें सिर्फ़ इसलिये रखा है लिस्ट में क्यों कि उनसे एक ख़ास विचारधारा वाले लोग क्या सोच रहे हैं और क्या करने जा रहे हैं उसका अंदाज़ा हो जाता है तो जैसे ही वह हजरात इस मूवी को लेकर एक्टिव मोड में आए तो समझ में अपने आप आ गया कि फ़िल्म चाहे जैसी भी हो असली एजेंडा क्या है। बहरहाल उन लोगो से कुछ कहना नही, कहना उस विशेष विचार धारा के विरोधियों से हैं। सबसे पहले कश्मीर पलायन के पूरे मुआम्ले की, चाहे वहा एक ही पंडित क्यों ना मारा गया हो, और चाहे सिर्फ़ एक को ही मजबूर होना पड़ा हो किसी भी वजह से अपने घर को छोड़ने पर, मेरी हमदर्दी उस कार्नेज के हर पीड़ित के साथ है। मेरे लिए एक लाश भी उतनी ही तकलीफ़ देने वाली है जितनी हज़ार। मुझे वह तर्क भी लेकर नही आना कि उस वक्त सरकार किसकी थी, या आज तीन सौ सत्तर को हटाने के बाद भी उन्हें क्यों नहीं बसाया गया, इसलिए नहीं कि यह तर्क कमज़ोर हैं बल्कि इसलिए कि इन तर्कों से ना तो उन लोगो को कोई फ़र्क पड़ता है जो इसे दो हज़ार चौबीस की तैयारी के लॉन्चिंग पैड के बतौर इस्तेमाल कर रहे हैं ( वैसे वह यह सब नहीं भी करते तो भी जीत ही जाते) और ना उनके तरफदारो को। बाक़ी यह कि उन्होंने फ़िल्म के लिए पैसा दिया। आज उनके खेमे का एक आदमी तीन तीन लोगो को यह फ़िल्म दिखा रहा है और वह लोग सिनेमा हॉल्स में नारे लगा रहे हैं वगैरह वगैरह। फाइन। इधर वाला तबका क्या कर रहा है, उसका विरोध करके उल्टा उसकी पब्लिसिटी कर रहा है। काम ऐसे नहीं होगा। आप भी एक चाहे कम बजट की ही सही मगर एक फ़िल्म बनाइए COVID FILES, और उसमे बिना कोई मुस्लिम कैरेक्टर शो किए किसी पंडित परिवार की ही कहानी दिखाइये। उसे ऑक्सीजन के लिए तड़पता दिखाइए, अपनी लाशें दफ्न करने को मजबूर होता हुआ दिखाइए। और फिर अनुपम खेर की आंखों पर कैमरा लगवाइए। पता चल जाएगा कितना हिंदुओ के लिए दर्द है। यही लोग जो नारे लगा रहे हैं सिनेमा हॉल्स में रोते हुए निकल रहे हैं, यही उस फ़िल्म को रोकने ना पहुंच जाएं तो कहिएगा। अब अरे हमारे पास पैसा कहां है,,, यह कहा हैं वह कहा है। अभी अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली ने संसद में इस फ़िल्म पर बैन लगाने की मांग की। जनाब एक फ़िल्म उतने ही पैसों में बन जाएगी जितने में आप ने बहन जी से टिकट खरीदा होगा।
और एक बात और विपक्ष की राजनीति करने वाला या उसे वोट देने वाला हर शख़्स अब कई सालों तक इलेक्शन हारने के लिए तैयार हो जाए। तो हर हार के बाद अखिलेश और राहुल को गलियाने या कमियां निकालने की जगह हार के बाद की राजनीति करना सीखिए। नही कर सकते तो ई वी एम पर कमल के निशान को दबाने से आप को कोई रोकता नही है। दबाइये और जीतने वाले ग्रुप में शामिल होकर जीतने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का आनंद लीजिए।
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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