गीत चतुर्वेदी न तो अदब की इब्तेदा हैं न इंतेहा। लेकिन एक कवि हैं और उनके कवि होने से इसलिए भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी कविता कम अज़ कम तनक़ीद के मीज़ान प तौली जा सकती है। उनकी कविता की तारीफ़ या मज़म्मत की जा सकती है।
लेकिन गीत के लिए एक ख़ास क़िस्म की नफ़रत मुझे लोगों में नज़र आती है। ख़राब कविता लिखने वालों की तादाद अच्छी कविता लिखने वालों से बहुत ज़्यादा है। लेकिन सबको गिरोह बना बना कर ट्रोल नहीं किया जाता फ़ेसबुक पर। लोगों के अच्छे काम की तारीफ़ होती है और ख़राब या सतही काम को नज़र-अंदाज़ कर दिया जाता है।
लेकिन क्या वजह है कि गीत के साथ ये सुलूक किया जाता है… मुमकिन है कि उसे मिलने वाली शोहरत से लोग जलते हों लेकिन शोहरत तो औरों के हिस्से में भी ख़ूब आई है और ऐसे ऐसे अहमक़ों को मिली कि यक़ीन हो चला मुझे तो की भई जो शोहरत याफ़्ता है वो सतही है, लेकिन ख़ैर ऐसा नहीं है।
इसी तरह की दूसरी और तीसरी भी कोई वजह हो सकती है लेकिन मुझे लगता है अस्ल वजह गीत या उनकी कविता है ही नहीं। अस्ल वजह है लोगों के अंदर की एंग्ज़ायटी, कुछ न होने का डर, एहसास ए कमतरी।
ट्रोल करने की आदत लोगों में इसी से डिवेलप हुई है।
ट्रोल - हाँ जी ट्रोल, यानी फ़ेसबुकिया लिंचिंग। हाँ वही जो आज कल सड़क पर बहुत आम है। कई लोग एक शख़्स को मिल के मारते हैं।
क्यूँ?? क्यूँकि उसने कुछ ऐसा किया है जो उन लोगों को पसंद नहीं।
यही इन ट्रोलियों का हुजूम फ़ेसबुक पर करता है।
सड़क पर लिंचिंग करने वालों की तरह फ़ेसबुक पर लिंचिंग करने वालों के पास भी सैकड़ों जवाज़ हैं।
मिसाल के तौर पर गीत के बारे में इन लोगों से बात करें तो ये कहते हैं की गीत अदब को बहुत नुक़सान पहुँचा रहा है। लेकिन इन फ़ेसबुकिया लिंचारों से कोई पूछने वाला नहीं की भाई तूने या तेरे उस्ताद या तेरे उस्ताद के उस्ताद ने अदब की तशरीफ़ में कौन से सितारे जड़ दिए हैं।
लफ़्ज़ ए तशरीफ़ का इस्तेमाल करने के लिए माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन अफ़सोस या ग़ुस्से में इस तरह का कुछ लिख या बोल दिया जाता है।
तो बात ये है की तनक़ीद कीजिए भाई, बहुत बे रहमी से कीजिए और धज्जियाँ उड़ा दीजिए फ़ुलाँ के काम की लेकिन आप जो कर रहे हैं वो अदब के लिए आपकी संजीदगी नहीं दिखाता बल्कि आपके अंदर का वो ख़तरनाक इंसान दिखाता है की जिस से आप अगर मिल लें तो आपकी हालत ख़राब हो जाये।
अल्लाह की क़सम मुझे आप लोगों से डर लगता है।
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