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जिंदगी की तल्खियों पर तारिक़ अज़ीम 'तनहा' का कलाम पढ़े।

सोज़िशे-दयार से निकल जाना चाहता हूँ,
हयात से अदल में बदल जाना चाहता हूँ!

तन्हाई ए उफ़ुक़ पे मिजगां को साथ लेके,
मेहरो-माह के साथ चल जाना चाहता हूँ!

आतिशे-ए-गुज़रगाह-ए-चमन से हटकर,
खुनकी-ए-बहार में बदल जाना चाहता हूँ

मैं हूँ खुर्शीद-ए-पीरी जवानी के सफ़र में,
बहुत थक गया हूँ ढल जाना चाहता हूँ!

मैं हूँ 'तनहा' शिकस्ता तन-ओ-जहन से,
आशियाँ-ए-बाम पर टहल जाना चाहता हूँ!

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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