ये नहीं है के सुनता नहीं हूँ मैं,
बस कुछ बोलता नहीं हूँ मैं
हैं तुझमे लाख ख़ामियां पर,
उनपे कुछ कहता नहीं हूँ मैं!
जो आ रहा कुचलता जा रहा,
देखके चलो, रस्ता नहीं हूँ मैं!
खुदी से मिरी दुश्मनी हैं अब,
खुदी की बात मानता नहीं हूँ मैं,
छिपकर बैठी हैं ग़ज़ल मुझसे,
सुन अभी आईना नही हूँ मैं
मैं हूँ दर-दर ठोकर के काबिल,
इतना ना चाह बा वफ़ा नहीं हूँ मैं!
रोज़ कत्ल होकर हालातो से,
जिन्दा हूँ, पर जिन्दा नहीं हु मैं!
गलती मुँह पर गिना देता हूँ,
बिलकुल भी अच्छा नहीं हूँ मैं
ग़ज़ल तो लिख लेता हु मगर,
ग़ज़ल कहीं कहता नहीं हूँ मैं!
ग़ज़ल मेरे पास बैठी हैं और,
'तनहा' हूँ पर अकेला नहीं हूँ मैं
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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