निग़ाहें-निगार सितम-सआर ही सही
निगाहें-यार से दिल फिगार ही सही
जब ज़माना बन चूका हैं अदु हमारा
तो तेरे हाथो में भी तलवार ही सही
मुस्कान नहीं रुख पर अब अपने यूँ
इश्क़ में दिल बेचारा बेज़ार ही सही
तुम नहीं अब मेरे फिर ये क्या कम हैं
तेरी यादो में दिल गिरफ्तार ही सही
'तनहा' लिखता हूँ खिलाफे-जुल्मत
मैं सबकी आँखों में यूँ खार ही सही
----तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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