चेहरे जिन लोगो के चमकदार निकलेंगे
जमीर उनके उतने ही दागदार निकलेंगे
जो मुखोटे लगाये हैं ख़ुशी के चेहरे पर
दिल के अंदर से वो लोग बेज़ार निकलेंगे
जिससे सारा हिन्दुतान हो चूका परेशान
तारीफ़ करते उसकी अखबार निकलेंगे
तुझे जख्मी देखकर हम सहम उठते हैं
हम ही जख्म भरेंगे, गमखवार निकलेंगे
जब छा जायेगी कभी गुलशन में खिज़ा
करने को इसे शादाब हम बहार निकलेंगे
नज़र जब भी उठेगी इस मुल्क की तरफ
लेकर साहिबे-ईमान तलवार निकलेंगे
रट लगा के बैठे हैं जो अच्छे दिनों की
हर काम में उनके ही भृष्टाचार निकलेंगे
दोस्ती अगरचे कर तो दुश्मनो से पूछ
वरना ए 'तनहा' आस्तीन में खार निकलेंगे
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