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काजी मोहियुद्दीन जी की याद में कुछ मिसरे।


ये जो मंगलौर में राहते,  नज़र आयी हैं!
ये उसी शक्स की दुआए  असर लायी है!!

थे वो सियासी हुक़ुमरा मगर थे एहले कलम!
हमे बताते प्यारी बाते कभी कहते कोई नज़्म!
जो ख्याल रखतेसभी का, सब चुनते उन्हे ही!
जीतते हर दफा डगमगाया नहीं कभी अज़्म!!


कहाँ अब उनकी बराबरी सा कोई जहाँ मे!
अज़ीम शख्सियत थे वो मेरे हिन्दोस्ताँ में!!
जब वो बोलते तो लबो से भी फूल झड़ते थे!
इतनी मिठास थी उनके अंदाज़ ए बयाँ में!!!!


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