अदबी दुनिया का मुनव्वर चला गया,
हाय! क्या ग़म के अनवर चला गया!
जादुई लहज़ा भी कमाल था उसका,
सुख़न का ऐसा मोअतबर चला गया!
हरेक लफ्ज़ तेरा ठण्ड भरे हैं दिल में,
सरसब्ज़ करता ख़ाकपर चला गया!
रहा साथ जब तक पनपी हैं तहज़ीब,
दुसरो पे गुफ्तगू का असर चला गया!
ये क्या रोवे हैं दुनिया हो होके पागल,
फिर इस दुनिया से सुख़नवर चला गया!
ये बाद-ओ-गुल-ओ-चमन रखेंगे याद,
होके जुदा उनका मोअतबर चला गया!
साल-ए-नौ की बधाई दूँ तो दूँ कैसे,
आसमा में उर्दू का जिगर चला गया!
गीता को बख्शी हैं उर्दू में भी इज़्ज़त,
लिखके शायरी में कलमवर चला गया!
देख के 'तनहा' हैं उदास तेरे जाने से,
उसका तो जैसे पूरा दहर चला गया।
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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