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गिरती इंसानियत

इंसान अब इन्सानियत को खो चूका,
करके नापाक हरकते दरिंदा हो चूका!

वो लड़की पली थी बड़े ही नाज़ के सामने,
घर था खडा हर रिवाज़ के सामने,
उसे पाला गया था भले ही प्यार से,
खामोश रहती हर आवाज़ के सामने!

साफ़ दिल को दरिन्दगी में भिगो चूका,
करके नापाक हरकते दरिंदा हो चूका,

वो वक़्त से अपने कॉलेज जाती थी,
और वक़्त से घर अपने आती थी!
वो लड़की थी क्या यही जुर्म था,
जो वो तुम्हे पढ़ती नहीं भाती थी!

इस कुकर्म से तू इंसानियत मिटो चूका,
करके नापाक हरकते दरिंदा हो चूका!

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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