हर बार जैसा करता था वैसा नहीं किया,
रुकने का मैंने उसको इशारा नहीं किया!
हर सू दिखूंगा मैं ही जब इश्क़ तुमको होगा,
अभी खुद को तुमने मेरा दीवाना नहीं किया!
गुज़र जाऊंगा हद से तो हो जाऊंगा पागल,
इश्क़ में मैंने खुद को यूँ रांझा नही किया!
हमेशा रखी है लाज तेरी आन-बान की,
मैंने कभी भी तेरा कहीं चर्चा नहीं किया!
खुद हो गए रुसवा इस जहान-ए-फानी से,
लेकिन कभी भी तुझको 'तनहा' नहीं किया!
रुकने का मैंने उसको इशारा नहीं किया!
हर सू दिखूंगा मैं ही जब इश्क़ तुमको होगा,
अभी खुद को तुमने मेरा दीवाना नहीं किया!
गुज़र जाऊंगा हद से तो हो जाऊंगा पागल,
इश्क़ में मैंने खुद को यूँ रांझा नही किया!
हमेशा रखी है लाज तेरी आन-बान की,
मैंने कभी भी तेरा कहीं चर्चा नहीं किया!
खुद हो गए रुसवा इस जहान-ए-फानी से,
लेकिन कभी भी तुझको 'तनहा' नहीं किया!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
काबिलेतारीफ कलमकार
ReplyDelete👌👌
'चर्चा' के स्थान पर 'ज़िक्र' शब्द हो तो बेहतर लगेगा
ReplyDeleteचर्चा जम नहीं रहा