मोज़ों की सुने और दरियाओं से सलीक़ा रखे,
यानी खंजरों में रहे और लबो पर नग़मा रखे।
ये ज़र्फ़ मुझको बख़्शा है मेरी अना ने के,
जंग में भी दुश्मनों से कोई तो रिश्ता रखे।
कोई है जो सैलाबों-तूफां के मुक़ाबिल हो,
कोई है जो लहरों से लड़ने का ज़ज़्बा रखे।
ये दुआ की थी उसने मुझसे बिछड़ते हुए के,
जा खुदा तुझको उम्र भर 'तनहा' रखे।
यानी खंजरों में रहे और लबो पर नग़मा रखे।
ये ज़र्फ़ मुझको बख़्शा है मेरी अना ने के,
जंग में भी दुश्मनों से कोई तो रिश्ता रखे।
कोई है जो सैलाबों-तूफां के मुक़ाबिल हो,
कोई है जो लहरों से लड़ने का ज़ज़्बा रखे।
ये दुआ की थी उसने मुझसे बिछड़ते हुए के,
जा खुदा तुझको उम्र भर 'तनहा' रखे।
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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