क़ुरआन, इस्लाम, हदीस तो आसमानी हैं,
तिरी हुक़ूमत तो बस पांच दिन की कहानी हैं!
मिटा भी सकते हैं तिरी हुक़ूमत को हम सब,
अगर हम ये सोच ले की हुक़ूमत मिटानी हैं!
फ़ाक़ा करके भी रहे हैं जिन्दा रहे ईमान पर,
सिर्फ गोश्त खाना ही हमारी कहाँ निशानी है!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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