बादशाह ओ औलिया को ढूंढता हूँ मैं,
हकपरस्त ए हुक़ुमरां को ढूंढता हूँ मैं!
दयारे-नसीम-ऐ-कानून हर सू चले,
ऐसी ही चमन ए फ़िज़ा ढूंढता हूँ मैं!
वकारे-सू-ए-दारे-अहले-सिपाही,
औरंगज़ेब अबके ऐसा ढूंढता हूँ मैं!
जबीं सज्दे में लबो पे नामें-अल्लाह,
खातिर में रश्क-ए-खुदा ढूंढता हूँ मैं!
जो हो खिलाफ इस तीन तलाक से,
दौर-ए-गर्दिश-ए-बुतां ढूंढता हूँ मैं!
दिल मशगूले-मामूर होंठो पे अर्जिया
दिले-सदा दे ऐसी दुआ ढूंढता हूँ मैं!
लेके चराग़ इन आदमियो के शहर में,
बचा हैं क्या कोई इंसा ढूंढता हूँ मैं!
इन लोगो के अलम ओ दुःख दर्द से,
हुक़ूमत तेरी खात्मा-फ़ना ढूंढता हूँ मैं!
भले ही मेरा मुब्तिला सब से हैं मगर,
फिर भी खुद को 'तनहा' ढूंढता हूँ मैं!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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