मंज़िल के लिए घर से निकलना जरूर हैं,
वापस नही हैं मुड़ना वहीं सम्भलना जरूर हैं!
फलक पर बैठा चाँद यही कहता है रोज़,
कुछ ख्वाबो का आँखों में पलना जरूर हैं!
पैमाना उठाकर मैख़ाना उठाने लगे शराबी,
शराब को पीकर इनका मचलना जरूर हैं!
झूट से, मक्कारी से, फ़क़त हैं उसके रिश्ते,
चाहे कोई भी मुद्दा हो उसे बोलना जरूर है!
बहुत पक चुके झूठी तकरीरे सुन-सुनकर,
कैसे भी उसके होठों को सिलना जरूर हैं!
ना मिले वो तो कोई और मिलेगा हमे भी,
किसी से ही सही दिल को बहलना जरूर हैं!
इश्क़ कोई खेल नहीं बस ये जानिए 'तनहा',
एक आग का फूल हैं और चलना जरूर हैं!
वो नहीं आएगा आज शाम इस राह से फिर भी,
मुझ बेताब को बालकनी में टहलना जरूर हैं!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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