जिगर पे फिर चोट खाना हो गया हैं,
फिर दिल उनका निशाना हो गया हैं।
मेरे सर झूठ मँढ़ने लगे वो कमबख्त,
घर में एक बातिल-खाना हो गया हैं!
अब जिंदगी का हैं यही मेरे मकसद,
कातिलो को जिन्दा दफनाना हो गया!
जाहिलो को अपने खून से मैं जला दूँ,
मेरा खून इतना गर्माना हो गया हैं!
सुनू हूँ बात तो कानो पे हाथ धरु हूँ,
कितना झूठा अब ज़माना हो गया हैं!
एक पे एक बोलते रहते नया झूठ,
बातो का उनकी कारखाना हो गया हैं!
अब मैं जरा आसमाँ पे क्या चमका,
मेरा सर उनका निशाना हो गया हैं!
तू करे झगडा तो फिर सुनले तुझको,
लाजिम जाहिल बताना हो गया हैं!
अक्सर मेरा पीछा किया करते हैं वो,
कहाँ-कहाँ आना-जाना हो गया हैं!
कातिलो की ये ओछी मिसाल हैं के,
गले तक मेरे हाथ आना हो गया हैं!
बे-वजह तोहमते लगायी लड़की पर,
गले को उसके दबाना हो गया हैं!
साक़ी जहाँ बैठा छलका वहीं जाम,
चलता फिरता मयखाना हो गया हैं!
'तनहा' जिक्र जब छिड़ा महफ़िल,
आँखों से अश्क़ रवाना हो गया हैं।
सुनू हक़ की तनहा जब कभी मैं,
सोचूँ कमबख्त जमाना हो गया हैं!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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