वो आज भी मेरा इंतज़ार करती हैं,
कहते हैं अब भी मुझे वो प्यार करती हैं!
रो-रोकर तमाम रात मेरी यादों में,
आँखों को अपनी दो चार करती हैं!
ज़बाँ करती हैं इज़हार कुछ और मगर,
आँखे कुछ और ही इज़हार करती हैं!
मुझसे प्यार हैं उसको पर ना जाने क्यों,
मिलती हैं हर बात पे तक़रार करती हैं!
आती हैं तो छा जाती हैं चेहरे पर हसी,
चली जाती हैं तो मुझे बेज़ार करती हैं!
'तनहा' कदमों में पड़ी होंगी एक रोज़,
जो सब शोहरतें मुझे इनकार करती हैं!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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